Dr Bhim Rao Ambedkar biography, history and photo ambedkar jayanti in hindi

भारत रत्न से सम्मानित डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवन परिचय और जयंती | Dr Bhim Rao Ambedkar Biography, 2023 Jayanti In Hindi

Dr Bhim Rao Ambedkar biography, history and ambedkar jayanti in hindi

डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवन परिचय और जयंती | Dr Bhimrao Ambedkar History and 2023 Ambedkar Jayanti In Hindi

Dr Bhimrao Ambedkar History In Hindi– भारत की मातृभूमि पर जब- जब अधर्म ने अपनी जगह बनाई तब-तब उस अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म को कायम रखने के लिए ईश्वर के अवतार में मनुष्य जन्म लेते हैं। जब अंग्रेजों के शासनकाल था, तब उस समय भी गलत विचारधारा के लोग इस मातृभूमि को अंग्रेजो की गुलामी से आजाद करने के बजाय मानव-मानव में जाति के आधार पर भेदभाव करने से नहीं चूकते थे।

ऐसी गलत विचारधारा के लोगो का विरोध कर दलितों को सम्मान दिलाने और उनके अधिकार के लिए और भारत की आजादी को सही दिशा-निर्देश देने के लिए ईश्वर रूपी महामानव डॉ .भीमराव अम्बेडकर का जन्म हुआ जिन्हे आज ये दुनिया बाबा साहेब के नाम से भी जानती है । उन्होंने भारत की दिशा ही बदल दी और आज भी दलित लोग इन्हे भगवान की तरह पूजते है।

डॉ भीमराव अम्बेडकर भारतीय संविधान के अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, न्यायविधिक और एक महान समाज सुधारक थे जो एक प्रसिद्ध राजनेता के रूप में उभर के आये। उन्होंने कई सामाजिक बुराइयों को खत्म करने और दलित व पिछड़ी जाति के लोगो के अधिकारों की रक्षा करने के प्रयास किये उन्होंने छुआछूत जैसी कुरीतियों को और अशिक्षा और गरीबी को और कई सामाजिक समस्याओं को खत्म करने के लिए संघर्ष किये।

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भारत रत्न सम्मान से सम्मानित-

पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में डॉ भीमराव अम्बेडकर को नियुक्त किया गया था। उनकी उपलब्धियों एवं मानवता के लिए उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1990 में उन्हें मरणोपरान्त देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न‘ से सम्मानित किया किया गया था।

डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवन परिचय (Dr Bhimrao Ambedkar History In Hindi)

क्रमांकजीवन परिचय बिंदुडॉ भीमराव अम्बेडकर का जीवन परिचय
1.पूरा नाम-डॉ भीम राव अम्बेडकर
2.वास्तविक नाम –अम्बावाडेकर
3.प्रसिद्ध नाम –बाबा साहेब
4.जन्म –14 अप्रैल 1891
5.जन्म स्थान –महू, इंदौर, मध्यप्रदेश
6.पिता का नाम –रामजी मालोजी सकपाल
7.माता का नाम –भीमाबाई मुरबादकर
8.भाई का नाम –बलराम, आनंदराव
9.बहिन का नाम –मंजुला और तुलसा
10.पत्नी का नाम –रमाबाई (1906) और डॉ. शारदा कबीर
11.पुत्र का नाम –यशवंत
12.राष्ट्रीयत –भारतीय

डॉ बी आर अंबेडकर का बचपन और प्रारंभिक जीवन (Earlier Life of Dr. B R Ambedkar)-

डॉ भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को राज्य मध्य प्रदेश गाँव महू में हुआ था। उनके पिता भारतीय सेना में सूबेदार मेजर थे तथा उस समय म्हो छावनी में तैनात थे।

उनकी माता- भीमाबाई मुरबादकर और पिता- रामजी मालोजी सकपाल की 14 संतान थी, जिनमे बाबा साहेब 14 भाई बहनो में सबसे छोटे बेटे थे। पिता के रिटायरमेन्ट के बाद 1894 में उनका परिवार महाराष्ट्र के सतारा में चला गया।

भीमराव की माता की मृत्यु के बाद परवरिश किसने संभाली?

1896 में जब भीमराव की माता की मृत्यु हो गई तो उनकी परवरिश उनकी चाची ने संभाल ली परन्तु उन्हें कई आर्थिक समस्याओं से गुजरना पड़ा, कुछ समय बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली और उनका पूरा परिवार मुंबई रहने चला गया। वही अम्बेडकर जी की पढाई भी हुई और फिर जब वर्ष 1905 में वो 15 वर्ष के हुए तब उनका विवाह 9 वर्ष की रमाबाई से हो गया। 1912 में उनके पिता रामजी सकपाल जी भी गुजर गए।

उनका का परिवार हिन्दू धर्म की महार जाति से सम्बन्धित था, उस समय के कुछ लोग उन्हें अस्पृश्य समझकर उनके साथ भेदभाव एवं बुरा व्यवहार करते थे। यही कारण है कि भीमराव को भी बचपन में भेदभाव का शिकार होना पड़ा, वर्ष 1907 में जब उन्होंने अच्छे अंको के साथ मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली , तो बड़ौदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ ने प्रसन्न होकर उन्हें 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति देना प्रारम्भ किया।

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डॉ बी आर अंबेडकर की शिक्षा (Education of Dr. B R Ambedkar)-

वर्ष 1908 में उन्होंने 12 वी की परीक्षा पास की। भीमराव एक हिन्दू मेहर जाति के थे और उन्हें छुआछूत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता था ऊँची जाति के लोग उन्हें छूना भी पाप समझते थे। अम्बेडकर जी जब आर्मी स्कूल में पढ़ते थे तब वहां भी उन्हें इस भेदभाव का शिकार होना पड़ा उनके दलित वर्ग के दोस्तों को कक्षा में आने की अनुमति नहीं थी और उन्हें और उनके दोस्तों को पानी को छूने भी नहीं दिया जाता था।

डॉ भीमराव अम्बेडकर ने बी ऐ किस विषय में की थी?

स्कूल का चपरासी उन्हें दूर से पानी डालकर देता था और जिस दिन कभी चपरासी नहीं आता था उस दिन उनको पानी तक नहीं मिलता था। भेदभाव का ऐसा व्यव्हार देखकर अम्बेडकर जी ने निर्णय लिया की वे दलित लोगो के अधिकार और सम्मान के लिए संघर्ष करेंगे। उसके बाद वर्ष 1912 में राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में बी ए करने के बाद बड़ौदा महाराज ने उन्हें अपनी फौज में उच्च पद पर नियुक्त कर दिया।

डॉ भीमराव अम्बेडकर ने नौकरी से त्यागपत्र कब दिया?

अपने पिता की मृत्यु के बाद वर्ष 1913 में उन्होंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और उच्च शिक्षा हेतु बाहर विदेश पढ़ने के लिए चले गए। बड़ौदा के महाराज सयाजी राव गायकवाड़ ने उनके इस फैसले से प्रसन्न हुए और उनके त्यागपत्र को स्वीकार कर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए उन्हें 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति भी देना प्रारम्भ किया। इसके बाद वर्ष 1915 में भीमराव अमेरिका चले गए, जहाँ न्यूयॉर्क के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से उन्होंने एम ए तथा वर्ष 1916 में उन्होंने पी एच डी की उपाधि प्राप्त की।

अम्बेडकर का दलितो को उनका अधिकार दिलाना-

वर्ष 1917 में वे कोल्हापुर के शासक शाहजी महाराज से मिले और उनकी आर्थिक सहायता से मूक नायक नामक पाक्षिक पत्र निकालना शुरू किया, जिसका उद्देश्य था दलितो को उनका अधिकार दिलाना।

पी एच डी की डिग्री प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वर्ष 1923 में वे इंग्लैण्ड चले गए और वहाँ लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उन्होंने डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की। क़ानूनी व्यवसाय में उन्होंने बार एट लॉ की डिग्री भी प्राप्त की। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1923 में अम्बेडकर अपने देश लोट गए और मुंबई उच्च न्यायालय में वकालत करना शुरू किया।

वकालत करते समय भी उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनके साथ भेदभाव किया जाता था। कोई वकील उन्हें छूना तो दूर उनके पास भी नहीं जाता था उन्हें कोर्ट में बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं देते थे। जब उन्हें एक हत्या का मुकदमा मिला ,तो सभी बैरिस्टर ने उस केस को करने से मना कर दिया परन्तु अम्बेडकर ने इस केस की अच्छे से पैरवी की और जज ने उनके पक्ष में निर्णय दिया। इस मामले के बाद सभी लोग अम्बेडकर जी का सम्मान करने लगे।

डॉ भीमराव अम्बेडकर राजनैतिक सफ़र (Dr. B R Ambedkar Political Life)-

बचपन से ही अम्बेडकर जी के साथ अपनी जाति के प्रति भेदभाव हो रहा था इससे उनको बहुत अपमान सहना पड़ता था इसी कारण उन्होंने इसका विरोध करने का निर्णय लिया और संघर्ष करने के लिए वर्ष 1927 में उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ नामक एक मराठी पाक्षिक समाचार – पत्र निकालना शुरू किया, जिसका उद्देश्य दलित लोगो के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें सम्मान दिलाना और शोषण से बचाना था।

कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपनी ओर आकर्षित करना-

इस पत्र के निकलने के बाद बम्बई के गवर्नर अम्बेडकर जी के विचारो से प्रभावित हुए और उन्हें विधानपरिषद् के लिए चुना गया और वर्ष 1937 तक वे बम्बई विधानसभा के सदस्य बने रहे थे ।

भीमराव अम्बेडकर ने दलितों के साथ हो रहे शोषण का कठिन संघर्ष किया। उस समय उच्च वर्ग के लोग दलितों को अछूत मानकर मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने देते थे। इसीलिए अम्बेडकर जी ने दलितों को भी मन्दिरों में प्रवेश दिलाने के लिए सत्याग्रह किया। वर्ष 1980 में उन्होंने नासिक के कालाराम मन्दिर में प्रवेश दिलाने के लिए 30 हजार दलितों के साथ सत्याग्रह किया। इस सत्याग्रह में उच्च वर्ग के लोगो ने लाठिया चला दी जिससे कई लोग घायल हो गए परन्तु फिर भी किसी ने हार नहीं मानी और आखरी दम तक अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे और अंत में अम्बेडकर जी ने सभी को मंदिर में जाने की अनुमति दिला दी और इस घटना के बाद सभी लोग ‘ उन्हें बाबा साहब ‘ कहने  लगे।

इण्डिपेण्डेण्ट लेबर पार्टी की स्थापना कब की गयी?

अम्बेडकर जी ने कट्टरपन्थियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए दलित एवं अछूत समझे जाने वाले लोगों की भलाई के लिए वर्ष 1935 में  ‘इण्डिपेण्डेण्ट लेबर पार्टी’ की स्थापना की। जिससे उन्हें गवर्नमेण्ट लॉ कॉलेज के प्रधानाचार्य का पद हासिल हुआ। जब वर्ष 1937 में बम्बई में चुनाव की प्रक्रिया हुई तो अम्बेडकर जी की पार्टी को पन्द्रह में से तेरह स्थानों पर सफलता मिली और कांग्रेस पार्टी के जवाहरलाल नेहरू एवं सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे बड़े नेता भी अम्बेडकर की विचारधारा से प्रभावित हुए।

वायसराय की रक्षा परामर्श समिति की सदस्यता के लिए वर्ष 1941 में अम्बेडकर को इस समिति का सदस्य बनाया गया। कुछ समय बाद वर्ष 1944 में वापस वायसराय ने एक्जीक्यूटिव काउंसिल बनाई और श्रम सदस्य के रूप में डॉ. अम्बेडकर नाम चुनकर उन्हें सम्मानित किया गया।

15 अगस्त, 1947 को जब भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई हुआ, तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार बनी और उसमे स्वतन्त्र भारत का पहला कानून मन्त्री डॉ भीमराव अम्बेडकर को बनाया गया। फिर उन्हें भारत की संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया।

डॉ भीमराव अम्बेडकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान कब घोसित गया ?

भारत के संविधान को बनाने में अम्बेडकर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है इसी कारण उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता भी कहा जाता है । उनकी मृत्यु के बाद वर्ष 1990 में डॉ भीमराव अम्बेडकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।

डॉ भीमराव अंबेडकर का बौद्ध धर्म स्वीकार करना (Dr. B R Ambedkar & Buddhism)-

डॉ भीमराव अम्बेडकर सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते थे। वे हिन्दू धर्म के विरुद्ध नहीं थे बल्कि वे सभी लोगो को समान अधिकार दिलाना चाहते थे और भेदभाव जैसी बुराइयों को दूर करना चाहते थे जब उन्हें ये समझ आ गया की उच्च वर्ग के लोगो के रहते हुए पिछड़े एवं दलितों को उनका अधिकार नहीं मिल सकता है तो उन्होंने धर्मपरिवर्तन करने का निर्णय ले लिया और उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को दशहरे के दिन करीब दो लाख लोगों के साथ नागपुर में एक विशाल समारोह में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।

डॉ भीमराव अम्बेडकर की म्रत्यु कब हुई? (Dr. B R Ambedkar Death)-

बाबा साहेब के नाम से प्रसिद्ध डॉ. भीमराव आम्बेडकर एक महान्, समाज सुधारक, शिक्षाविद् क्रांतिकारी, योद्धा एवं दलित राजनेता थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन दलितों के साथहो रहे अन्याय,छुआछूत, शोषण,ऊँच-नीच तथा असमानता का विरोध करने में लगा दिया।

6 दिसम्बर 1956 को भारत के इस महान् सपूत एवं दलितों के मसीहा का निधन हो गया। अम्बेडकर ने बहुत हद तक दलितोको उनका अधिकार दिलाकर उन्हें सम्मान से जीवन जीना सिखाया। आज समाज में जो छुआछूत की बुराई कम हुई है तो इसका सबसे ज्यादा योगदान अम्बेडकर को ही जाता है। अम्बेडकर के इस योगदान का पूरी मानव जाती सम्मान करती है।अम्बेडकर जी आज दुनियाभर के लिए दलितों के मसीहा और समाज के महामानव है।

डॉक्टर अम्बेडकर द्वारा लिखी गयी कुछ किताबे (Dr Bhimrao Ambedkar Some Books)

अपने जीवनकाल में अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उन्होंने कई पुस्तके लिखी है, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय पुस्तकें हैं –

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अम्बेडकर जयंती 2021, 2022, 2023, 2024 व 2025 में कब है? (Dr. B R Ambedkar jayanti 2023 date)-

वर्षदिनांकवारजयंती का नाम
202114 अप्रैलबुधवारडॉ अम्बेडकर जयंती
202214 अप्रैलगुरुवारडॉ अम्बेडकर जयंती
202314 अप्रैलशुक्रवारडॉ अम्बेडकर जयंती
202414 अप्रैलरविवारडॉ अम्बेडकर जयंती
202514 अप्रैलसोमवारडॉ अम्बेडकर जयंती

आखरी शब्द-

डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवन परिचय हिंदी में (Dr Bhimrao Ambedkar History In Hindi) पढ़ कर केसा लगा हमें आशा हे की आप को इस से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा अगर आप का कोई सुझाव है तो हमें नीचे कमेंट में अपना सुझाव जरूर बताये और “Bhimrao Ambedkar History In Hindi” इसे ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ शेयर भी करे ताकि उन्हें भी ऐसी जानकारी मिल सकते।

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गुरु रविदास जी के जीवन परिचय पर निबंध और जयंती | Guru Ravidas Ji Biography, Essay on History, 2023 Jayanti In Hindi

गुरु रविदास जी के जीवन परिचय पर निबंध और 2023 में उनकी जयंती { Guru Ravidas Ji Biography, History On Essay, 2023 Jayanti In Hindi }

इतिहास के 15 वी शताब्दी के महान समाज सुधारक संत गुरु रविदास जी (रैदास) का जन्म एक दलित परिवार में 1376 ईस्वी से 1399 ईस्वी के बीच हुआ था। वह उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में रहते थे। इनके पिता संतो़ख दास जी जिन्हे कई लोग रग्घु जी के नाम से भी पुकारते थे। वह राजा नगर राज्य में सरपंच हुआ करते थे इनका जूते बनाने और सुधारने का काम हुआ करता था वो मरे हुए जानवरों की खाल निकालकर उससे चमड़ा बनाकर उसकी चप्पल बनाते थे।

रविदास जी अधिकतर भक्ति की भावना में ही लीन रहते थे उन्हें बचपन से ही साधू संतो के साथ रहना बहुत अच्छा लगता था, लेकिन रविदास जी भक्ति के साथ अपने काम पर विश्वास करते थे वो अपने पिता के साथ जूते बनाने का काम सीखते और पूरी मेहनत के साथ काम करते थे। रविदास जी अपनी मेहनत से लोगो की मदद करते थे।

गुरु रविदास जी का जीवन परिचय (Guru Ravidas Biography and history)

क्रमांकजीवन परिचय बिंदु गुरु रविदास जी का जीवन परिचय
1.नामसंत गुरु रविदास जी
2.प्रचलित नामरोहिदस, रैदास
3.जन्म तिथि376-77 इसवी से 1399 के बीच माना जाता है।
4.जन्मस्थानगोवर्धनपुर गांव, वाराणसी, उत्तरप्रदेश
5.मृत्यु1540 इसवी (वाराणसी)
6.पिता का नामश्री संतो़ख दास जी (रग्घु जी)
7.माता का नामश्रीमती कलसा देवी जी
8.पत्नी का नामश्रीमती लोना जी
9.बेटा का नामविजय दास जी
10.दादा का नाम श्री कालू राम जी
11.दादी का नामश्रीमती लखपति जी
12.रविदास जी की जयंतीमाघ महीने के पूर्णिमा के दिन
13.स्वभावकल्याणवादी ,समाज सुधारक,निर्गुणसंत
14.प्रचलित भजनकह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
15.प्रचलित दोहेमन चंगा तो कठौती में गंगा
16.रविदास स्मारक रविदास पार्क, रविदास घाट, रविदास नगर, रविदास मेमोरियल गेट आदि।
Guru Ravidas History and Jayanti

संत रविदास जी के अनेक नाम-

संत रविदास जी को राजस्थान के लोग ‘रैदास’ के नाम से जानते थे और पंजाब के लोग ‘रविदास’ कहते थे। बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ के नाम से पहचानते थे तो गुजरात के लोग ‘रोहिदास’ के नाम से जानते थे। कुछ लोगो की मान्यता है कि माघ मास की पूर्णिमा को रविवार के दिन रविदास जी ने जन्म लिया तो उनका नाम रविदास रख दिया गया। इस तरह अलग अलग जगह पर उन्हें अलग अलग नाम से लोग जानते थे।

रविदास दास जी का स्वभाव-

रविदास जी का स्वभाव और उनके गुणों का पता उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से चलता है। एक बार की बात है त्यौहार पर आस-पड़ोस के लोग गंगा में स्नान के लिए जा रहे थे तो उनके शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने को खा तो वह बोले में गंगा-स्नान के लिए जरूर जाता परन्तु वह जाने से क्या पुण्य मिलेगा जब मेरा मन यहाँ लगा रहेगा जिस काम को करने के लिए हमारी आत्मा और मन तैयार ही ना हो वह काम करना उचित नहीं यदि मन लगे तब ही कठौते के जल में गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है।

इससे पता चलता है की उनके विचारों का अर्थ यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। ईश्वर का सच्चा भक्त वही हो सकता है जो अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करे।

बचपन से ही रविदास जी बहुत बहादुर और भगवान् को बहुत मानने वाले थे। वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।

रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। उनके गाओं में जब भी किसी को मदद की जरूरत होती तो वे निस्वार्थ होकर लोगो की मदद करते कभी कभी वो बिना पैसा लिए लोगों को जूते भी दान में दे दिया करते थे। उन्हें लोगो की सहायता करना बहुत अच्छा लगता था। यदि रास्ते में उन्हें कोई साधु-संत मिल जाएं तो वे उनकी सेवा करने लग जाते थे। उनका स्वाभाव बहुत ही विनम्र और दयालु था। इसी कारण लोग उनके अनुयायी बनने लग गए।

गुरु रविदासजी का वैवाहिक जीवन-

Guru Ravidas Ji का भगवान् के प्रति इतना घनिष्ट प्रेम और सच्ची भक्ति के कारण वो अपने परिवार, व्यापार और माता-पिता से दूर होते जा रहे थे। यह देख कर उनके माता-पिता ने उनका विवाह श्रीमती लोना देवी से करवा दिया और उनसे उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम विजय दास रखा।

विवाह के बाद भी वह अपने परिवार के व्यापार में सही तरीके से ध्यान नहीं दे पा रहे थे। यह देख कर उनके पिता ने उन्हें घर से निकल दिया ताकि वह अपने सामाजिक कार्य बिना किसी की मदद लिए कर सके। इसके बाद वह अपने घर के पीछे रहने लगे और अपने सामजिक कार्यों को करने लगे।

रैदास की वाणी भक्ति की से श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी की उन्हें अपनी समस्याओ का समाधान मिल जाता था और लोग उनके अनुयायी बन जाते थे।

गुरु रविदासजी की शिक्षा | Education of Guru Ravidas Ji

रविदास जी जब बचपन मे अपने गुरु, पंडित शारदा नन्द की पाठशाला में जाया करते थे तो उनके गांव के कुछ उच्च जाति के लोगों ने उन्हें वहा पढ़ने से मना कर दिया परन्तु उनके विचारों प्रतिभा को देखकर पंडित शारदा नन्द को यह यकीन हो गया था कि रविदासजी बहुत ही प्रतिभाशाली हैं और वो आगे जाकर एक अच्छे आध्यात्मिक गुरु और महान समाज सुधारक बनेगे। रविदास जी बहुत ही बुद्धिमान बच्चे थे और पंडित शारदा नन्द से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह बहुत महान समाज सुधारक बने गए। रविदास जी के साथ पाठशाला में पंडित शारदा नन्द जी का बेटा भी पढ़ता था, वे दोनों अच्छे मित्र थे एक बार वे दोनों छुपन छुपाई का खेल रहे थे।

एक दो बार खेलने के बाद रात हो गई, जिससे उन लोगों ने अगले दिन खेलने की बात कही जब दुसरे दिन सुबह रविदास जी खेलने आये तो उनका मित्र उन्हें वहाँ दिखाई नहीं देता तब वो उसके घर चले गए वहां जाकर उन्हें पता चला कि रात को उसके मित्र की मृत्यु हो गई और ये सुन रविदास जी सुन्न पड़ जाते है।

रविदास जी को बचपन से ही अलौकिक शक्तियां मिली हुई जब उनके गुरु शारदा नन्द जी उन्हें मृत मित्र के पास ले जाते है तो वे अपने मित्र से कहते है कि ये सोने का समय नहीं है, उठो और मेरे साथ खेलो तो ये यह शब्द सुनते ही उनका मृत दोस्त जीवित हो गया। ये देख वहां मौजूद हर कोई अचंभित हो जाता है और इस तरह कई लोग उनके ऐसे चमत्कार देख कर उनके अनुयायी बन गए और उन्हें पूजने लगे।

रविदास जी की मृत्यु ( Sant Ravidas Death )

गुरु रविदास जी की सच्चाई, मानवता, भगवान् के प्रति प्रेम, सद्भावना देख, दिन पे दिन उनके अनुयाई बढ़ते जा रहे थे। दूसरी तरफ कुछ ब्राह्मण उनको मारने की योजना बना रहे थे। रविदास जी के कुछ विरोधियों ने एक सभा का आयोजन किया, उन्होंने गाँव से दूर सभा आयोजित की और उसमें गुरु जी को आमंत्रित किय।

गुरु जी उन लोगों की उस चाल को पहले ही समझ जाते है जब गुरु जी वहाँ जाकर सभा का शुभारंभ करते है तो गलती से गुरु जी की जगह उन लोगों का साथी भल्ला नाथ बैठ जाता और वो मारा जाता जब गुरु जी थोड़ी देर बाद अपने कक्ष में शंख बजाते है, तो सब अचंभित हो गए। अपने साथी को मरा देख रविदास जी बहुत दुखी हो गए और दुखी मन से गुरु जी के पास चले गए।

रविदास जी के अनुयाईयों का मानना है कि रविदास जी 120 या 126 वर्ष बाद अपने आप शरीर को त्याग देते है। माना जाता है की उन्होंने वाराणसी में 1540 ईस्वी में अपना शरीर स्वय ही समर्पण कर दिया। कुछ लोगो मानना है की वे चित्तौड़गढ़ से स्वर्गारोहण कर गए थे और चित्तौड़ में ही संत रविदास की छतरी बनी हुई है।

रविदास जी के दोहे, कोट्स ( Guru Ravidas Ji Dohe, Quotes )

Guru Ravidas Ji Dohe Quotes

“मन चंगा तो कठौती में गंगा”

Guru Ravidas Ji Dohe and Quotes in hindi

“रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात”

Guru Ravidas Ji Dohe, Quotes Hindi

“मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊँ सहज सरूप”

Guru Ravidas Ji Dohe

“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात”

गुरु रविदासजी और बेगमपुर शहर Guru Ravidas Ji and Begumpura City-

बेगमपुरा शहर से रविदास जी का गहरा संबंध था क्योंकि यह शहर बहुत शांति और मानवता से जुड़ा शहर था। बेगमपुरा शहर को उनकी कविता लिखते समय उनके द्वारा आदर्श रूप दिया गया था जहाँ उन्होंने वर्णन किया था कि बिना किसी कष्ट, पीड़ा, या भय और एक भूमि के साथ एक शहर जहाँ सभी लोग बिना किसी भेदभाव, गरीबी और जाति अपमान के समान हैं। एक ऐसी जगह, जहाँ सब लोग मिलकर रहते है , कोई चिंता नहीं है ,किसी को , कोई आतंक नहीं है,कोई भी किसी को कर नहीं देता है।

गुरु रविदास जी का मीरा बाई से संबंध-

मीरा बाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तोड़ की रानी थी। बचपन में मीरा बाई की माता के देहांत के बाद इनके दादा ने ही उनकी परवरिश की। दादाजी को दुदा जी भी कहते थे जो रविदास जी के अनुयायी थे। मीरा बाई अपने माँ बाप की एकलौती संतान थी। मीरा बाई अपने दादा जी के साथ हमेशा रविदास जी से मिलती रहती थी। जहाँ वे उनकी शिक्षा से बहुत प्रभावित हुई। शादी के बाद मीरा बाई ने अपनी परिवार की आज्ञा से रविदास जी को अपना गुरु बना लिया। उनकी शिक्षा से प्रभावित हो कर वो उनकी अनुयायी बन गई थी। कई लोगो का मानना हे की रविदास जी ने कई बार मीराबाई को मृत्यु से बचाया था।

रविदास जी के लिए मीराबाई ने लिखा हे वह यह है-

“गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी”
“मीरा सत गुरु देव की करै वंदा आस”
“जिन चेतन आतम कहया धन भगवन रैदास”

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संत रविदास का मंदिर और लोगो की आस्था

वाराणसी में संत रविदास का मंदिर और मठ बना है। लोग उन्हें बहुत भक्ति के साथ पूजते है और उनकी पूजा करते है। बहुत दूर दूर से लोग मंदिर के दर्शन करने के लिए आते है और वह रविदास जी की भक्ति में लीन हो जाते है।

इसके अतिरिक्त श्री गुरु रविदास जी के नाम पर पार्क भी बना है जो उनकी यादगार के लिए बनाया गया है। कई जगह उनके स्मारक बने हुए है जो उनकी भक्ति के प्रतिक है।

संत गुरु रविदास जी के 41 पवित्र लेख जो गुरु ग्रन्थ साहिब में उल्लेख किये गए है

सीरी –1गौरी –5असा –6
गुजारी –1सोरथ –7धनासरी –3
जैतसरी –1सूही –3बिलावल –2
गौंड –2रामकली –1मरू –2
केदार –1भैरू –1बसंत –1
मल्हार –3

गुरु रविदास जी की जयंती और अवकाश 2021, 2022, 2023, 2024 व 2025

रविदास जयंती माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस साल रविदास जी की जयंती 29 फरवरी 2023, में मनाई जाएगी, जो उनका 644 वा जन्म दिवस होगा । वाराणसी में इनके जन्म स्थान पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। जहाँ लाखों की संख्या में उनके भक्त वहां पहुँचते है। कई अनुयाई इस दिन पवित्र नदी में स्नान करते है, और फिर रविदास की प्रतिमा की पूजा करते है। रविदास जयंती मनाने का उद्देश्य यही है, कि गुरु रविदास जी की शिक्षा को याद किया जा सके,उन्होंने जो लोगो को भाईचार और शांति की सीख दी हे उसे लोग अपने जीवन में उतार सके।

Guru Ravidas Ji Jayanti and Holiday In India:-

जन्म दिवसदिनांकवारवर्षअवकाशराज्य
64427-फरवरीशनिवार2021गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब
64516-फरवरीबुधवार2022गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब
6465-फरवरीरविवार2023गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब
64724-फरवरीशनिवार2024गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब
64812-फरवरीबुधवार2025गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब

संत रविदास जयंती का महत्व-

संत रविदास जयंती के लिए हम सब मिलकर इस जयंती को मनाने के लिए एक जुट हो जाते है और सब साथ मिलकर उनकी पूजा अर्चना करते है उनके भजन गाते है और उनके दोहे पढ़ते है सड़को पर रैली निकलते है। उन्हें याद करके हमे इस बात का बोध होता है की समाज में जाती के नाम पर ऊंच -नीच का भेदभाव नहीं करना चाहिए और सबको मिलजुलकर रहना चाहिए। संत रविदास जयंती हमे उनके सिखाये हुए मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है।

गुरु रविदास जी और ब्रहामणों की कहानी –

एक समय की बात है जब गुरु रविदासजी को नरेश के दरबार में बुलाया और उन पर ये आरोप लगाया की वो कोई संत नहीं है बल्कि ढोंग कर रहे है और उन्हें भगवान की मूर्ति छूना तो दूर भगवान् की पूजा भी नहीं करनी चाहिए। राजा ने दोनों को मूर्ति लेकर गंगा नदी के तट पर बुलाया जब वो दोनों मूर्ति लेकर गंगा नदी के तट पर आये तो राजा ने कहा- जिसके हाथ से भगवान की मूर्ति पानी में डूबने के बजाय तैरेगी वही भगवान का सच्चा भक्त है। सबसे पहले ब्रहामणों ने अपना मूर्ति पानी में डाला तो मूर्ति झट से पानी में डूब गयी ।

उसके बाद गुरु रविदासजी ने ठाकुर जी के मूर्ति को धीरे से पानी में छोड़ा और वो तैरने लगी ।यह चमत्कार देख कर गुरु रविदास जी के भक्त बन गए और उनके पैर छूने लगे और उस दिन के बाद लोग उन्हें मानने लग गए और उनका सम्मान करने लग गए।

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संत गुरु रविदास जी के सामाजिक कार्य-

संत रविदास ने समाज में जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए अपने भजन, दोहों के माध्यम से सामाजिक एकता पर बल दिया और उन्होंने मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। संत गुरु रविदास जी ऐसे समाज की कल्पना करते है जहां किसी भी प्रकार का ऊंच-नीच, जात-पात, दुःख-सुख, लोभ-लालच का भेदभाव नहीं किया जाता है। रविदासजी जी लिखते है कि-

‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच,
नर कूं नीच कर डारि है,
ओछे करम की नीच’

यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने जन्म से नीच नहीं होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति कर्म के हिसाब से नीच होता है।

गुरु रविदास जी का सिद्धांत | Principle of Guru Ravidas Ji

  • भगवान एक है और अत्यंत शक्तिशाली है।
  • ईश्वर का एक कण मनुष्य की आत्मा है।
  • भगवान निचली जाति के लोगों को नहीं मिल सकते है ऐसी धारणा पर विश्वास नहीं करना।
  • ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करना।
  • मनुष्य की मृत्यु निश्चित है।

संत रविदास की रचनाएं –

Compositions of saint ravidas-संत रविदास की रचनाएं

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा।

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी।

Compositions of saint ravidas-संत रविदास की रचनाएं

प्रभु जी, तुम मोती हम धागा,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भक्ति करै रैदासा।

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती।

गुरु रविदास जीवनी का निष्कर्ष-Conclusion

गुरु रविदास (Sant Guru Ravidas Ji) एक महान संत थे। रविदास जी ने ऊंच-नीच, जात-पात का भेदभाव मिटाने के अत्यंत प्रयास किये और वो प्रयास सफल भी हुए। वे दलित वर्ग के लोगों को समाज में सम्मान दिलाने और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। जिसके कारण उनका सम्मान किया जाने लगा। ईश्वर से मिली अद्भुत शक्तियां उन्होंने समाज के कल्याण में लगा दी। अतः हम भी उनके सिखाये हुए मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बना सकते है।

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शायरी क्या है? शायरी और ग़ज़ल में अंतर क्या है? | Shayari kya hai? Shayari or gazal me difference kya hai

शायरी क्या है? ग़ज़ल और शायरी में अंतर क्या है? जानिये हिंदी में।

हिंदी शायरी क्या है (Hindi Shayari Kya Hai)

हिंदी शायरी एक ऐसा माध्यम है जो लोगो की भावनाओ उनकी फीलिंग को शायरी के जरिये आसानी से बता सकते है। शायरी के रूप में कही गयी बाते दिल और दिमाग पर बहुत तेज और जल्दी असर डालती है और हम किसी के भी अहसास को शायरी के जरिये आसानी से समझ जाते है। शायरी के जरिये जो बात कही जाती है वो सीधे दिल को छू जाती है। भारत में अनेक शायरों ने अपनी शायरियो से लोगो के दिलो को जीता है और उन्हें शायरी के माध्यम से सीधी राह भी दिखाई है। शायरी के जरिये लफ्ज़ो को नया और ख़ास रुतबा मिलता है।

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शायरी का अर्थ –

“शब्दों की ऐसी रचना जिससे मन उसमे लीन होकर उस भाव में डूब जाता है।”

शायरी का इतिहास और शायरी का दौर कब से शुरू हुआ –

हमारे देश भारत में कलाओ का भण्डार भरा पड़ा है। यहां कई भारतीय कलाकारों और कलाओ की पैदाइश हुई है जो अपनी अलग पहचान रखते है यहां कई भारतीय संस्कृति की कलाएं एक दूसरे में सिमटी हुई है। भारत में शायरी का दौर मुग़ल संस्कृति से चला आ रहा है। शायरी मुग़ल संस्कृति से मिली हुई है जो भारत में बहुत प्रसिद्ध हुई और लोगो ने इसे बहुत सराहा है।

वैसे तो शायरी कविता का ही एक रूप है परन्तु शायरी में शब्दों का जो समावेश किया गया है वो दिल को छू जाने वाला है। शायरी पढ़ने का जो लुत्फ़ है उसका अलग ही मजा होता है जो लोगो के दिलो दिमाग पर गहरी छाप छोड़ जाता है। शायरी में उर्दू के अल्फाजो का इस्तेमाल किया गया है जो हमे कई सारी जबान में छिपी हुई गहराइयों को महसूस कराती है।

शायरियां कैसी दिखती है –

❤ तू चाँद मैं💖सितारा होता❤
❤आसमान में एक💖आशिया हमारा होता।❤
❤लोग तुझे दूर से💖देखा करते और❤
❤सिर्फ पास रहने का💖हक हमारा होता।❤

शायरियां कैसी दिखती है

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❤आग लगी दिल💖में जब वो खफ़ा हुए❤
❤एहसास हुआ तब, 💖जब वो जुदा हुए।❤
❤करके वफ़ा वो हमे💖कुछ दे न सके❤
❤लेकिन दे गये बहुत💖कुछ जब वो वेबफा हुए।❤

शायरी बताइए, Shayari and Ghazal in Hindi

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❤जब खामोश आँखों💖से बात होती है❤
❤तो ऐसे ही मोहब्बत💖की शुरुआत होती है।❤
❤तेरे ही ख्यालों💖में खोये रहते हैं❤
❤न जाने कब दिन💖और कब रात होती है।❤

हिंदी शायरी क्या है, shayari hindi

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अच्छी और बेहतरीन शायरी –

एक प्रकार से शायरी उर्दू कविता ही होती है जिसका मक़्सद लोगो की किसी भी तरह की भावनाओ को अपनी शायरी के जरिये महसूस कराना है। इस लेख में आपको ऐसी शायरी पढने को मिलेगी जिससे आप अपनी सच्ची भावनाओ को महसूस कर किसी को भी अपने दिल की बात बहुत आसानी से समझा सकते है। शायरी की खास बात ये है की इसमें जिन अल्फाज़ो का इस्तेमाल किया गया है इससे दो लोगो के बीच बहुत अच्छा रिश्ता बन जाता है ख़ास कर जो एक दूसरे को चाहते है पर अपने दिल की बात ब्यान नई कर पाते वो शायरी के माध्यम से अपने दिल की भावनाओ को व्यक्त कर सकते है।

आज कल हर कोई अपने फेसबुक / ट्वीटर / इंस्टाग्राम / व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाने के लिए नयी और दिल को छू जाने वाली शायरियां ढूंढ़ते है , हम आपको ऐसी शायरी से रूबरू करायगे जिससे पढ़कर आपका दिमाग ताजा हो जायगा और आप इसे अपनी गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड , पति-पत्नी और अपने दोस्तों या अन्य के साथ शेयर कर सकते है। 

शायरी कई प्रकार की होती है ( Types of Shayaris )–

  1. Love Shayari (लव शायरी )
  2. Sad Shayari ( उदास शायरी )
  3. Sorry Shayari (माफ़ी शायरी )
  4. Funny Shayari (फनी शायरी )
  5. Bewafa Shayari ( बेवफा शायरी )
  6. Dosti Shayari ( दोस्ती शायरी )
  7. Khushi Shayari ( ख़ुशी शायरी )
  8. Attitude Shayari ( घमंड शायरी )
  9. Haq Shayari ( हक़ शायरी )
  10. Duaa Shayari ( दुआ शायरी )
  11. Ankhein Shayari ( आंखें शायरी )
  12. Right Shayari ( राइट शायरी )
  13. Aansu Shayari ( आंसू शायरी )
  14. Maa baap Shayari ( माँ बाप शायरी )
  15. Shaadi Shayari ( शादी शायरी )
  16. Friendship Shayari ( फ्रेंडशिप शायरी )
  17. Bachpan Shayari ( बचपन शायरी )
  18. Break up Shayari ( ब्रेक-अप शायरी )
  19. Yaad Shayari ( याद शायरी )
  20. Alone Shayari
  21. Akelapan Shayari ( अकेलापन शायरी )
  22. Jeet Shayari ( जीत शायरी )
  23. Taarif Shayari ( तारीफ़ शायरी )
  24. Good Morning Shayari ( गुड मॉर्निंग शायरी )
  25. Best Good Evening Shayari  (गुड इवनिंग शायरी )
  26. Good Night Shayari ( गुड नाईट शायरी )
  27. Two Line Shayari ( दो लाइन शायरी )

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गज़ल क्या होती है –

गज़ल अरबी अदब की बहुत प्रसिद्ध कविता है जो कई सारी जबानो में लिखी गई है जैसे उर्दू, हिंदी, नेपाली, फारसी आदि। परन्तु जो उर्दू जबान में लिखी गई गजले है उनकी बात ही अलग है।

आज के दौर में जो लोग संगीत गाने वगैरा का शोक रखते है उतना ही कई शौकीन लोग गजल को भी बहुत पसंद करते है।

गज़ल का अर्थ –

गज़लका अर्थ औरत है इसका मतलब अपने प्रेमी या माशूक का जिक्र करना उसकी तारीफ़ करना औरत की खूबसूरती की बात करना होता है। प्रांरभ में तो गजल इसी अर्थ को देखते हुए लिखी जाती थी परन्तु अब गजल का नया दौर शुरू हो गया है अब जिंदगी के हर रूप में गजल लिखी जा रही है जो गजल के शौकीन लोगो के दिलो पे राज कर रही है। आज के दौर में लोग गीत और गानो के साथ-साथ गजलों का भी शोक रखने लग गए है जिससे गजल को भी अब ज्यादा महत्व मिलने लग गया है।

गजल शेरो का एक समूह होता है जिसके अंदर एक ही बहर और वजन के मुताबिक शेर होते है। ये शेर एक दूसरे से जुदां होते है यानी एक शेर का दूसरे शेर से कोई ताल्लुक नहीं होता है। एक गज़ल में 5 से 25 शेर लिखे जा सकते है।

दो लाइनों में जो शेर लिखे जाते है ये किसी एक गजल का हिस्सा होते है जिनका किसी और शेर से कोई ताल्लुक नहीं होता है। ये शेर अपने आप में मुकम्मल होते है।

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गजल के कई हिस्से होते है –

मिसरा – शेरो की हर पंक्ति को मिसरा कहा जाता है।

रदीफ़ – शेर में  बार बार आने वाले अल्फाजो को रदीफ़ कहा जाता है।

क़ाफ़िया – शेरों में जो अल्फाज तुकबंदी करते हैं उन्हें क़ाफ़िया कहते हैं।

मतला –   ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहा जाता है।

मक़्ता  – ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहा जाता है।

दीवान – ग़ज़लों के समूह को दीवान कहा जाता है।

शाही बैत –  गजल का सबसे उम्दा शेर शाही बैत कहलाता हैं।

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ग़ज़लें-

ये जो है हुक्म मेरे पास

💜ये जो है हुक्म मेरे पास न आये कोई,
इसलिए रूठ रहे हैं कि मनाये कोई💜

💜ताक में है निगाह-ए-शौक खुदा खैर करे,
सामने से मेरे बचता हुआ जाए कोई💜

💜हाल अफ़लाक-ओ-ज़मीन का जो बताया भी तो क्या,
बात वो है जो तेरे दिल की बताये कोई💜

💜आपने दाग़ को मुँह भी न लगाया अफसोस,
उसको रखता था कलेजे से लगाये कोई💜

💜हो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त भेजा,
आप की तरह से मेहमान बुलाये कोई💜

~ दाग देहलवी ~

शायरी और गजल के बीच अंतर क्या है ( Difference between Shayari and Ghazal in Hindi)

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गजल और शायरी दोनों की पैदाइश ही उर्दू से हुई है। आज के दौर में ये सभी जबानो में लिखी जा रही है परन्तु उर्दू के शब्दों से ये और भी बेहतरीन बन जाती है। बहुत से लोग शायरी और गजल को एक ही मान लेते है परन्तु इनमे कई तरह का अंतर पाया जाता है तो आज हम शायरी और गजल में क्या अंतर है ये बतायगे।

शायरी और गजल में अंतर (Shayari VS Ghazal)

शायरीग़ज़ल
1.शायरी को संगीतमय तरीके से बोला या लिखा जाता हैं।जबकि ग़ज़ल में अलग अलग शेर को अलग अलग भाव द्वारा पढ़ा जाता हैं।
2.शायरी दो पंक्ति की एक कविता होती हैजबकि गजल लम्बी या बड़ी कविता होती है जिसमे 5 से लेकर 25 शेर होते है।
3.शायरी अपने आप में आजाद कविता हैजबकि गजल कई शेरो से मिलकर बनी होती है।
4.शायरी में बहर की कोई जरुरत नहीं होती हैजबकि ग़ज़ल में बहर का इस्तेमाल करना बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योकि बहर के बिना गजल पूरी नहीं की जा सकती हैं।
5.शायरी में मिसरा और मतला का इस्तेमाल नहीं किया जाता हैंजबकि गजल में मिसरा और मतला का इस्तेमाल किया जाता है।
6.शायरी में काफ़िया और रदीफ़ का इस्तेमाल सिर्फ पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में ही किया जाता हैजबकि ग़ज़ल में मतले के दोनों लाइन में काफ़िया और रदीफ़ होता है और बाकी सभी शेरो में सिर्फ दूसरी पंक्ति में ही काफ़िया और रदीफ़ पाया जाता हैं।
7.शायरी के अंदर पूरी शायरी का एक ही भाव प्रकट किया जाता हैंजबकि ग़ज़ल में हर एक शेर का भाव अलग अलग होता हैं।
8.एक शायरी गजल का एक शेर और मतला नहीं बन सकती हैंजबकि गजल का मतला और एक शेर मिलकर एक शायरी जरूर बना सकते है
9.शायरी को संगीतमय लय से पढ़ा जाता हैजबकि गजल को वाद्य यंत्रों के साथ गाया जाता है।

शायरी के लिए आखरी शब्द –

शायरी क्या है और ग़ज़ल और शायरी में अंतर क्या है ? इसकी सम्पूर्ण जानकारी हमने इस लेख में दी है यदि आपको यह लेख शायरी क्या है पसंद आया हो तो आप इस लेख को अपने दोस्तों आदि के साथ जरूर शेयर करे और अगर इस लेख से संबंधित कोई सवाल या सुझाव है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बता सकते हैं।

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Eid Pr Nibandh-easy, ईद पर निबंध

ईद पर निबंध { ईद उल फितर } | Essay On Eid Ul Fitr in Hindi

ईद पर निबंध, ईद उल फितर पर हिन्दी में निबंध

Eid Pr Nibandh, ईद पर निबंध

Eid Pr Essay In Hindi: ईद आने से एक महीने पहले रमजान का पवित्र महीना आता है। रमजान के महीने में मुसलमान लोग सुबह जल्दी उठ कर सूर्योदय से पूर्व कुछ खा-पीकर दिनभर रोजा (व्रत) रखा करते हैं। पाक-साफ रह कर दिन में पांच बार नमाज अदा करते हैं तथा शाम को रोज़ा नमक या खजूर से अपना रोज़ा खोलते /समाप्त करते हैं। इसी तरह से यह ३० दिन तक चलते है। रमजान में गरीबो को दान-पुण्य तथा निर्धनों आदि की मदद तहे दिल से की जाती है रमजान के ३० दिन पुरे होने के बाद ईद का त्यौहार आता है जिसे ईदुल फित्र भी कहा जाता है।

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मुसलमानो में ईद साल में दो तरह की आती है :-

  1. ईद (ईद-उल-फितर)
  2. बकरा ईद (ईद उल जुहा / ईद उल-अज़हा)

ईद का अर्थ:-

ईद अरबी का लफ्ज है जिस का अर्थ खुशी, जश्न मनाना होता है। ईद-उल-फितर का अर्थ है “रोज़े पुरे होने का त्यौहार” इसलिए ईद को ईद उल फित्र, ईद उल फितर, ईद, मीठी ईद भी कहा जाता है। ईद उल फितर शब्द अरबी के ‘फतर’ शब्द से बना हुआ है जिसका अर्थ है “टूटना”।

इस लेख में हम ईद यानि की ईदुल फित्र के बारे आप को जानकारी देंगे।

भाईचारे का त्यौहार ईद उल फितर पर निबंध –

हमारे देश भारत में अलग – अलग तरह के संस्कृति, धर्म और जाती लोग रहते है। सभी धर्मो के के लोग अपने धर्म के अनुसार त्यौहार मनाते है उसी तरह मुस्लिम समुदाय के लोग भी उनके मजहब के अनुसार बहुत से त्यौहार मनाते हैं। मुस्लिम धर्म का सबसे प्रमुख त्यौहार ईद उल फितर है। इस त्यौहार का हिन्दू धर्म के लोग भी मुस्लिम भाइयों को बधाईयाँ देते है। इस त्यौहार पर हिन्दू और सभी धर्मो के लोग भी अपने जान-पहचान वाले मुस्लिम भाइयों को बधाईयाँ देते है और मिठाईयां, खीर खाने उनके घर जाते है। इस तरह ईद भाईचारे और एकता को बढ़ावा देती है और नयी नयी खुशियां लेकर आती है।

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ईद उल फितर –

ईद उल फितर का त्योहार इस्लाम मजहब में मुसलमानो का बहुत ही खास त्यौहार माना जाता है। इस्लाम धर्म में मुसलमानो में ईमान का बड़ा ही महत्व है। अपने ईमान को मजबूत रखने के लिए हर मुसलमान खुदा की इबादत करता है और क़ुरआन पढता है।

रमज़ान का महीना इबादत और बरकत वाला महीना है! पुरे रमजान मुसलमान खुदा से अपने द्वारा किये गए बुरे कामो की माफ़ी मांगते है भविष्य में सही रास्ते पर चलने की और जीवन में खुशियों की दुआ करते है।

मुसलमान पुरे महीने रोजे रखते है और इबादत करते है और रमजान के 30 रोजे पुरे होने की ख़ुशी में चाँद देख कर ईद मनाई जाती है। इस त्यौहार को मुसलमान ईद-उल-फितर भी कहते है।

ईद कब मनाई जाती है –

मीठी ईद का त्योहार इस्लामी महीने के शव्वाल की पहली तारीख को मनाया जाता है । इस महीने से पहले रमजान का महीना आता है जिसे मुसलमान बहुत ही पाक महीना मानते हैं और इस पुरे महीने रोजे रखते है और सूरज के निकलने से लेकर सूरज के डूबने तक कुछ भी नहीं खाते पीते है। जब सूरज डूबने लगता है तब रोजा खोला जाता है जिसे उर्दू में इफ्तारी कहते है । रोजे रखकर मुसलमान पांच वक्त की नमाज भी अदा करते है और नमाज पढ़ते है । दिनभर कुरान शरीफ को पढ़ा करते है।

ईद-उल-फितर त्यौहार का महत्व –

इस्लाम मजहब में ईद उल फितर का त्यौहार बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह त्यौहार बहुत सारी खुशियां लेकर आता है और हमे सही रास्ता भी दिखाता है। ईद उल फितर लोगों में सच्चाई तथा भाईचारा बनाने की कोशिश करती है।

ईद-उल-फितर का एक अलग वैज्ञानिक महत्व भी है। मुस्लिम रमजान के महीने में पुरे महीने 30 दिन के रोजे रखते है जिससे उनके शरीर को जरूरी न्यूट्रिशन नहीं मिल पाता जिससे उनके अंदर के सारे कीटाणु खत्म हो जाते है और खजूर खाने से शरीर में जरूरी पोषक तत्व का निर्माण होता है और शरीर जल्दी स्वस्थ होता है।

ईद-उल-फितर के दिन मुसलमान जरुरतमंदो को पैसे खाना और अन्य जरूरी चीजें दान में देते हैं। दान को मुसलमान जकात और फितरा भी कहते है।

यह ईद का त्योहार कैसे मनाते हैं?

ईद से कई दिन पहले ही लोग जोरो शोरो से तैयारियां करने लग जाते है घरो की सफाई करते है है। बाजारों में कपडे,कुरता-पजामा ,टोपी, इतर, चूड़ियाँ,जूते और अपनी पसंद का सामान खरीदने जाते है और मकानों को सजाते है। ईद का चाँद दीखते ही हर तरफ रौनक और चहल पहल सी हो जाती है। चाँद देख कर महिलाये मेहँदी लगाती है। बच्चो की ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं होता है।

मीठी ईद के दिन सभी मर्द सुबह जल्दी उठ कर नहा धोकर ईद की नमाज़ के लिए ईदगाह जाने की तैयारी करते है। नया कुरता पहन कर टोपी और इत्र आदि लगाकर ईदगाह जाते है नमाज़ अदा करने से पहले जकात या फितरा देते है और उसके बाद सभी एक साथ ईद की नमाज़ अदा करते है। इस दिन हर मस्जिद में ईद की नमाज़ का अलग ही दृश्य देखने को मिलता है। कुछ लोग ईदगाह में भी नमाज़ पढ़ने जाते है। ईदगाह में ईद की नमाज़ के लिए बहुत भीड़ लगी होती है, इतनी भीड़ होती है की लोग सडको पर नमाज़ अदा करते है। नमाज़ अदा हो जाने के बाद सभी एक दूसरे के गले लगकर ईद की मुबारकबाद देते है।

हिन्दू मुस्लिम सभी एक दूसरे के गले लगते है और भाईचारे और एकता का पैगाम देते है। इस दिन हर जगह खुशियों भरा मौसम होता है। सभी घरो में इस दिन सिवईयें और तरह तरह की मिठाई बनाई जाती है और सभी एक दूसरे के घर मिठाई खाने और मुबारकबाद देने जाते है।

इस दिन बच्चों की खुशियों का ठिकाना नहीं रहता है। बच्चे ईद के दिन जल्दी उठ कर नए कपडे पहन कर तैयार होकर सबसे मिलने जाते है। इस दिन बच्चों को सभी ईदी और गिफ्ट देते है। ईदी लेकर बच्चे मेले में जाते है और खिलोने लेकर आते है और इस तरह ईद का त्यौहार बच्चों के लिए खुशिया लेकर आता है।

2021 में भारत में ईद उल फितर कब है –

ईद का इंतज़ार बच्चे, बड़े, बुजुर्ग सभी बेसब्री से करते है। ऐसे में सब ये जानने के लिए उत्सुक रहते है, की इस साल ईद कब है। ईद का त्यौहार वैसे तो चाँद दिखने के एक दिन बाद मनाया जाता है इसलिए यह रमजान के ३० दिन के रोज़े ख़त्म होने के बाद ही सही तारीख या ईद का पता लगा सकते है इसलिए ईद Wednesday 12 May, Thursday 13 मई, Friday 14 मई इन तीनो दिनों में से किसी एक दिन मनाई जा सकती है।

एक अनुमान के अनुसार अगर चाँद एक दिन पहले यानि की 13 मई 2021 गुरुवार को दिख जाता है तो ईद 14 मई 2021 शुक्रवार को मनाई जा सकती है। अगर ईद 14 मई शुक्रवार के दिन नहीं होती हे तो इन तीनो दिनों में से किसी एक दिन ईद का त्यौहार मनाया जाएगा।

FAQ –

ईद का त्यौहार कब मनाया जाता है?

रमजान के 30 रोजो के बाद।

ईद का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

रमजान के 30 रोजे पुरे होने की ख़ुशी में।

रमजान के कितने रोजो के बाद ईद आती है?

30 रोजो के बाद।

ईद का मतलब क्या है?

खुशी, जश्न।

बोहरा समाज की ईद कब है 2021

13 मई 2021

Shayari Talk के आखरी शब्द –

इस लेख में हमने ईद उल फितर पर हिंदी में निबंध पेश किया है जिसके जरिये आप ईद से जुडी सारी जानकारी और ईद से जुडी बाते जान पाएंगे । आशा है इस लेख से आपको ईद उल फितर की जानकारियां मिल गई होगी । यदि आपको यह लेख पसंद आया हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताये और इसे जरुर शेयर करें।

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Holi Wishes in Hindi ऋतुओं में वसन्त का, फूलों में गुलाब का, रस में शृंगार का जो स्थान है, वही स्थान हिन्दुओं के त्योहारों में होली का है । दीपावली में बच्चे दीप जलाकर तथा पटाखे छोड़कर आनन्दित होते हैं । दुर्गापूजा में बुजुर्ग मां दुर्गा का ध्यान कर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं, तो होली में जवान लोग अपनी सांसारिक चिन्ताओं को भूलकर वसन्त की बहार में अलमस्त हो जाते हैं । सारांश यह है कि दीपावली बचपन का, दुर्गापूजा बुढ़ापे का और होली अलमस्त जवानी का प्रतीक पर्व है ।

The Festival of Holi – होली का इतिहास

Indian Holi Festival होली से अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जिनमें प्रह्लाद और होलिका की कथा सबसे प्रमुख है । हिरण्यकश्यप नाम का एक बड़ा दुष्ट राजा था । वह ईश्वर भक्तो से द्वेष रखता था। उसने अपने राज्य में मुनादि करवा दी थी कि सभी नारायण स्थान पर मेरी पूजा करें । पर उसी का पुत्र प्रह्लाद नारायण का भक्त निकला । प्रह्लाद नारायण को भजना छोड़ दे, इसके लिए हिरण्यकश्यप ने अनेक उपाय किये । भक्त प्रह्लाद को मार डालने के लिए कई षड्यन्त्र रचे ।

हिरण्यकश्यप की एक बहिन होलिका थी । उसके पास एक चादर थी, जिस पर आग का प्रभाव नहीं पड़ता था । हिरण्यकश्यप के निर्देशानुसार होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में जा बैठी । लेकिन भगवत कृपा से परिणाम उलटा हुआ । होलिका जल गयी और प्रह्लाद बच गया । होलिका के जल मरने और प्रह्लाद की जान बच जाने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है । Happy Holi 2022

Holi Wishes in Hindi for friends

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ये रंगो का त्यौहार आया है, साथ अपने खुशियाँ लाया है, हमसे पहले कोई रंग न दे आपको, इसलिए हमने शुभकामनाओं का रंग, सबसे पहले भिजवाया है!

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Holi Wishes in Hindi-Quotes Messages Shayari Greetings Images

राधा के रंग और कृष्णा की पिचकारी, प्यार के रंग से रंग दो दुनिया सारी, ये रंग ना जाने कोई मजहब ना कोई बोली, मुबारक हो आपको खुशियों भरी होली!

यार के रंगों से भरो पिचकारी,
स्नेह के रंगों से रंग दो दुनिया सारी,
ये रंग न जाने न कोई जात न बोली,
सबको हो मुबारक ये हैप्पी होली..!

happy holi wishes in hindi

गुजिया की महक आने से पहले, रंगों में नहाने से पहले, होली के नशे में गुम होने से पहले, हम आपसे कहते हैं, हैप्पी होली सबसे पहले

Happy Holi Status

 Holi Wishes in Hindi

दिलो के मिलने का मौसम है, दूरियां मिटाने का मौसम है, होली का त्यौहार ही ऐसा है, रंगो में डूब जाने का मौसम है

Happy Holi

ऐसे मनाना होली का त्योहार,
पिचकारी से बरसे सिर्फ प्यार,
ये है मौका अपनों से गले मिलाने का,
तो गुलाल और रंग लेकर हो जाओ तैयार..

 Holi Wishes in Hindi

रंगों के त्यौहार में सभी रंगों की हो भरमार ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार यही दुआ है भगवान् से हमारी हर बार

होली मुबारक हो मेरे यार

सतरंग रंग लिए आए होली, गॉव शहर में छाई होली, रंगों में दुबे साथी सजनी, होली है और धूम मची है, भांग की खुमारी छाई है, तन में मस्ती मन में मस्ती, होली की मस्ती सब और छाई है..

खा के गुजिया, पी के भंग,
लगा के थोड़ा थोड़ा सा रंग,
बजा के ढोलक और मृदंग,
खेलें होली हम तेरे संग…

Happy Holi Wishes in Hindi

holi msg in hindi

निकलो गलियों में बना कर टोली भिगा दो आज हर एक की झोली कोई मुस्कुरा दे तो उसे गले लगा लो वरना निकल लो, लगा के रंग कह के

हैप्पी होली!!!

वो गुलाल की ठंडक, वो शाम की रोनक, वो लोगों का गाना, वो गलियों का चमकना,
वो दिन में मस्ती,
वो रंगों की धूम, होली आ गई है… होली है…

holi quotes hindi

खुदा करे हर साल चाँद बन कर आए दिन का उजाला शान बन के आए कभी ना दूर हो आपके चेहरे से हंसी ये होली का त्यौहार ऐसा मेहमान बन के आए

हैप्पी होली!!!

Happy Holi Wishes

Let’s get dipped in hues of love and trust on this festival of Holi. And rejoice this day.

Happy Holi to all

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Wishing you a Holi filled with sweet moments and colorful memories to cherish forever…

Happy Holi

holi msg english

Happiness is when you see brightness even in darkness, so keep on walking with the colorful mind to bring out the best color in you.