राजुला मालूशाही की प्रेम कथा, Rajula mallu Shahi

Valentine day – राजुला मालूशाही की प्रेम कथा | Rajula malusahi ki prem katha

राजुला मालूशाही की प्रेम कथा: लोक गाथाओं में गाई जाने वाली 15वीं सदी की अनोखी प्रेम कथा है राजुला-मालूशाही की। कहते हैं कुमाऊं के पहले राजवंश कत्यूर से ताल्लुक रखने वाले मालूशाही जौहार के शौका वंश की राजुला के प्रेम में इस कदर दीवाने हुए कि राज-पाट छोड़ संन्यासी हो गए। उनके प्रति राजुला की चाहत भी इस कदर थी कि उसने उनसे मिलने के लिए नदी, नाले, पर्वत किसी बाधा की परवाह नहीं की।

कत्यूरों की राजधानी बैराठ (वर्तमान चौखुटिया) में थी। जनश्रुति के अनुसार बैराठ में राजा दोला शाह राज करते थे। उनकी संतान नहीं थी। उन्हें सलाह दी गई कि वह बागनाथ (वर्तमान बागेश्वर) में भगवान शिव की आराधना करें तो संतान प्राप्ति होगी। वहां दोला शाह को संतानविहीन दंपति सुनपति शौक-गांगुली मिलते हैं। दोनों तय करते हैं कि एक के यहां लड़का और दूसरे के यहां लड़की हो तो वह दोनों की शादी कर देंगे। कालांतर में शाह के यहां पुत्र और सुनपति के यहां पुत्री जन्मी।

ज्योतिषी राजा दोला शाह को पुत्र की अल्प मृत्यु का योग बताते हुए उसका विवाह किसी नौरंगी कन्या से करने की सलाह देते हैं। लेकिन दोला शाह को वचन की याद आती है। वह सुनपति के यहां जाकर राजुला-मालूशाही का प्रतीकात्मक विवाह करा देते हैं। इस बीच राजा की मृत्यु हो जाती है।

Rajula malusahi ki prem kahani in hindi

दरबारी इसके लिए राजुला को कोसते हैं। अफवाह फैलाते हैं कि अगर यह बालिका राज्य में आई तो अनर्थ होगा। उधर, राजुला मालूशाही के ख्वाब देखते बड़ी होती है। इस बीच हूण देश के राजा विक्खीपाल राजुला की सुंदरता की चर्चा सुन सुनपति के पास विवाह प्रस्ताव भेजता है। राजुला को प्रस्ताव मंजूर नहीं होता।

वह प्रतीकात्मक विवाह की अंगूठी लेकर नदी, नाले, पर्वत पार करती मुन्स्यारी, बागेश्वर होते हुए बैराठ पहुंचती है। लेकिन मालूशाही की मां को दरबारियों की बात याद आ जाती है। वह निद्रा जड़ी सुंघाकर मालूशाही को बेहोश कर देती है। राजुला के लाख जगाने पर भी मालूशाही नहीं जागता। राजुला रोते हुए वापस चली जाती है।

यहां माता-पिता दबाव में हूण राजा से उसका विवाह करा देते हैं। उधर, मालूशाही जड़ी के प्रभाव से मुक्त होता है। उसे राजुला का स्वप्न आता है, जो उससे हूण राजा से बचाने की गुहार लगाती है। मालूशाही को बचपन के विवाह की बात याद आती है। वह राजुला के पास जाने का निश्चय करता है तो मां विरोध करती है।

इस पर मालूशाही राज-पाट, केश त्याग संन्यासी हो जाता है। दर-दर भटकते उसकी मुलाकात बाबा गोरखनाथ से होती है। उनकी मदद से वह हूण राजा के यहां जा पहुंचता है। राजुला मालूशाही को देख अति प्रसन्न हो जाती है,लेकिन मालूशाही की हकीकत विक्खीपाल पर खुल जाती है। वह उसे कैद कर लेता है। प्रेम कथा का दुखद अंत होता है।

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Chidiya ka Dana, चिड़िया का दाना

चिड़िया का दाना हिंदी कहानी | chidiya ka Dana Hindi kahani

चिड़िया का दाना चूं-चूं नाम की एक चिड़िया थी। एक दिन किसी जगह उसे कहीं से दाल का दाना मिला। वह जाती चक्की के पास और उस दाना पीसने को कहा। कहते-कहते ही वह दाना चक्की के अंदर जा गिरा। चिड़िया ने दाना मांगा तो उस चक्की ने बोला -” चक्की को इस बढ़ई से चिरवा ले, ओर वापस अपना दाना पा ले।”चिड़िया गई बढ़ई के पास।

उसने बढ़ई से बोला – “बढ़ई, तुम खूंटा चीरों, मेरी दाल का दाना वापस ला दो।” इतना समय बढ़ई के पास कहां था कि वह बात सुनता छोटी-सी चिड़िया की ? महाराज के पास चिड़िया दोडी। चापूलसों से महाराज घिरा बैठा था।उसने चिड़िया को भगा दिया। वह भागी फिर रानी के पास, रानी बाल बना रही सोने की कंघी से। उसने कहा चूं-चूं से। “अपना दाना भूल जा, तुझको मोती आ मैं खिलाऊं।”” भला क्या मोती भी खाए जाते हैं? सांप से चिड़िया ने कहा, “सांप-सांप, रानी को डस ।” रानी, अपने राजा को नहीं मनातीराजा उस बढ़ई को नहीं डांटता खूंटा नहीं चीरता बढ़ईनहीं मिलता मेरी दाल का दाना।”सांप भी मस्ती में पड़ा खा-पीकर था।

चिड़िया का दाना हिंदी कहानी

उसने सुनी-अनसुनी कर दी। चूं-चूं ने लाठी से बोला – “लाठी-लाठी सांप की गर्दन तोड़ दे ।” अरे! यह क्या! उसी पर गिरने लाठी तो थी।चूं-चूं अपनी जान बचाकर भागी आग के पास। आग से कहा – “जरा लाठी की अकल निकाल दो। उसे कोयला जलाकर कर दो।”न मानी आग । चूं-चूं का गुस्सा और भी बहुत बढ़ गया। उसने जाकर समुद्र से कहा-“तेरे पास इतना पानी , इस आग को जरा बुझातो।” अपनी ही दुनिया में समुद्र तो मस्त था। चूं-चूं की आवाज उसकी लहरों के शोर में दबकर रह गई।एक मोटा हाथी चूं-चूं का दोस्त था मोटू मल। पहुंची उसके पास वह भागी-भागी। ससुराल जाने की मोटूमल तैयारी में था।

उसने तो राम-राम का जवाब चूं-चूं तक न दिया। तब चूं-चूं को अपनी सखी चींटीरानी की याद आई। मुसीबत के समय कहते हैं कि दोस्त ही काम में आते हैं। चूं-चूं को चींटी रानी ने पानी पिलाया और सेना के साथ अपनी चल पड़ी। मोटू मल इतनी सारी चींटियों को देखकर डर गया और बोला-“हमें मारे-वारे न कोई भी, हम तो समुद्र सुखवात हे अभी लोए।” (मुझे मत मारना , मैं अभी सुखाता हूं समुद्र को।)इसी तरह समुद्र भी डरकर बोला- “हमें सुखवात न कोए, हम तो आग अभी बुझावत लोए हे।” और देखते-ही-देखते सभी अपने सीधे हो गए।

आग ने लाठी को धमकाया, लाठी सांप पर लपकी, सांप रानी को काटने दौड़ा, रानी ने राजा को समझाया, राजा ने बढ़ई को डांटा, बढ़ई आरी लेकर दौड़ा।अब तो चक्की के होश उडे। छोटी-सी चूं-चूं ने अपनी हिम्मत के बल बूते पर इतने सभी लोगों को निचे झुका दिया।आरी देखकर चक्की चिल्लाई- ” अरे हमें चीरे-वीरे ना कोई , हम तो दाना उगल लिये लोए।” (मुझे भी मत चीरों, मैं अभी दाना बाहर उगल देती हूं।)चूं-चूं चिड़िया ने अपना दाना लिया और वहा से फुर्र से उड़ गई।

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खुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न हो

रुला देने वाली कहानी खुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न | Khushi vahin per hai Jahan man praan hai

खुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न हो – एक बुढ़िया थी जिसके एक पुत्र था। दोनों ही निर्धन थे और बहुत ही कठिनाई में जीवन व्यतीत कर रहे थे। एक दिन बुढ़िया के पुत्र ने अपनी माता से कहा कि यहां पर तो मेरे लिए कोई काम है नहीं। आप मुझे अनुमति दीजिए ताकि मैं किसी दूसरे नगर जाऊं, हो सकता है कि वहां पर मुझे कोई काम मिल जाए और मैं पैसा कमाकर वापस आऊं। बूढ़ी मां ने अपने बेटे को एक सिक्का दिया और थोड़ी सी रोटी भी यात्रा-मार्ग के लिये दे दी।

इसके बाद उसने अपने पुत्र को विदा किया। बुढ़िया का बेटा चलते-चलते एक बाज़ार पहुंचा। वहां पर उसने एक बूढ़े भिखारी को देखा। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था कि है कोई जो मेरे जिंदगी के ज्ञान को एक रुपये में ख़रीदे? कोई भी उस बूढ़े भिखारी की बात नहीं सुन रहा था। इसी बीच उस युवक ने सोचा कि मेरे पास एक सिक्के के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्यों न यह सिक्का मैं इस बूढ़े को दे दूं? उसने यह सोचते हुए कि आजीविका का प्रबंध करने वाला तो ईश्वर है, वह सिक्का बूढ़े को दे दिया। सिक्का देते समय युवक ने उस बूढ़े से कहा कि अब तुम मुझको अपने जीवन का अनुभव बताओ। बूढ़े ने कहा कि कोई भी अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नहीं है। वह सोचता है कि इस स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जाऊं ताकि मेरी स्थिति बेहतर हो जाए।

बूढ़े ने कहा कि मेरे हिसाब से तो वह स्थान उचित है जहां पर मन को शांति मिले। प्रसन्नता महत्वपूर्ण है न कि स्थान।बूढ़े की बात सुनने के पश्चात युवा आगे बढ़ गया और चलते-चलते एक जंगल में पहुंचा। वहां पर उसने देखा कि बहुत से लोग एक कुएं के किनारे जमा हैं। उसने उन लोगों से पूछा कि क्या हुआ? लोगों ने कहा कि इस आशा के साथ हमारा कारवां यहां पर आया था कि इस कुएं से पानी निकाल कर पियेगा। अब हम स्वयं प्यासे हैं और हमारे पशु भी प्यासे हैं। हमने कुएं से पानी निकालने के लिए कई बार रस्सी में बालटी बांधकर कुंए में डाली और हर बार रस्सी टूट गई और बाल्टी कुएं में गिर गई

Khushi vahin per hai Jahan man praan hai

अंत में हमने एक व्यक्ति को कुएं में भेजा ताकि वह हमारी बाल्टियों को वापस ले आए किंतु वह भी वापस नहीं आया। पता नहीं कुंए में क्या है?युवक जो अपने घर से काम के लिए ही निकला था उसने यह सोचा कि इन लोगों को अपनी योग्यता और क्षमता को प्रदर्शित करने का यह बहुत अच्छा अवसर है। हो सकता है कि कारवां के लोग इसे देखकर मुझे कोई काम सौंप दें। उसने कारवां वालों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि आप अनुमति दें तो मैं कुंए में जाकर देखूं कि वहां पर क्या है? कारवां वालों ने उसे तुरंत ही कुंए में जाने की अनुमति दे दी क्योंकि वे स्वंय इस कार्य से डर रहे थे।

उन्होंने युवक की कमर में रस्सी बांधी और उसे कुंए में भेज दिया। वह दीवार के सहारे धीरे-धीरे कुंए में उतर रहा था। जैसे ही वह पानी के निकट पहुंचकर बाल्टियों को ढूंढने का प्रयास कर रहा था। एकदम से उसने एक बहुत बड़े काले देव को देखा। देव ने उससे कहा कि तुम यहां पर क्या कर रहे हो? देव को देखकर नौजवान डर गया। उसने देव को सलाम किया। इस पर देव हंसा और बोला। सलाम, सुरक्षा लाता है। तुम मुझको एक सज्जन युवक लग रहे हो।

मैं तुमसे एक प्रश्न करना चाहता हूं।यदि तुमने मेरे प्रश्न का सही उत्तर दे दिया तो मैं तुम्हें यह अनुमति दूंगा कि कुंए से पानी लेकर सुरक्षित वापस चले जाओ। यदि तुमने मेरी बात का सही उत्तर नहीं दिया तो मैं तुमको भी उन्हीं लोगों की भांति यहां पर बंदी बनाऊंगा जो तुमसे पहले यहां पर आए थे। ऐसे में युवक ने सोचा कि तुम्हें क्या परेशानी थी जो यहां पर आए। लेकिन अब इन बातों से कोई लाभ नहीं था। अब मुझको ईश्वर पर भरोसा करते हुए देखना यह है कि इस काले देव ने क्या सोच रखा है? यह सोचते हुए उसने देव से कहा कि ठीक है। मुझको तुम्हारी बात स्वीकार है।

तुम अपना प्रश्न पूछो। देव ने युवा से कहा कि यह बताओ कि खुशी कहां है? देव का प्रश्न सुनकर युवा ने कहा कि मालूम है कि खुशी तो धरती पर ही है। फिर उसने सोचा कि यदि मैं उसको यही उत्तर दूंगा तो हो सकता है कि उसे बुरा लगे क्योंकि उसका घर तो अंधेरे कुंए में हैं।अभी वह यह सोच ही रहा था कि युवक को बूढ़े फ़क़ीर की बात याद आई। बूढ़े की बात जैसे ही उसके मन में आई वह बहुत प्रसन्न हुआ। इसके बाद उसने देव से कहा कि जानते हो खुशी कहां है? जहां पर मन प्रसन्न है वहीं पर खुशी है। उसकी बात सुनकर देव बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा कि तुम्हारी बातों से पता चलता है कि तुम बहुत समझदार और अनुभवी हो। तुमसे पहले जिससे मैंने यह प्रश्न किया था उसने मुझसे कहा था कि धरती पर पाए जाने वाले बाग़, खुशी का स्थल हैं जबकि मुझको तो यही स्थान अच्छा लगता है और मैं इसे ही पसंद करता हूं। देव ने कहा कि जाओ बाल्टियों को ले जाओ।

कहानी खुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न

मैं तुमको तीन अनार दूंगा। जब तक अपने घर न पहुंच जाना किसी से भी इस बारे में कोई बात नहीं करना।युवक ने देव का आभार व्यक्त किया, बाल्टियों को पानी से निकालकर एकत्रित किया और उनको पानी से भरकर वापस ऊपर भेज दिया। उसके बाद वह भी कुंए से सुरक्षित वापस निकल आया। बाहर आने के बाद उसने देव की कहानी कारवां वालों को सुनाई किंतु अनार के बारे में उसने उनसे कुछ भी नहीं कहा। कारवां वालों से उसका आभार व्यक्त किया। फिर युवक कारवां के साथ अपने नगर वापस आ गया। जब वह अपने नगर पहुंचा तो कारवां वालों ने उसे एक गाय और भेड़ उपहार स्वरूप दी।

उन्होंने कहा कि हम कुछ समय तक तुम्हारे नगर में रहेंगे। जब हम यहां से वापस जाएंगे तो तुम भी हमारे साथ आ सकते हो और हमारे लिए काम कर सकते हो। इसके बाद युवक ने कारवां वालों से विदा ली और अपने घर की ओर चल पड़ा। अपने पुत्र को देखकर उसकी माता बहुत प्रसन्न हुई। उसने कहा कि बहुत अच्छा हुआ कि तुम आ गए। मुझको तो आशा नहीं थी कि तुम इतनी जल्दी वापस आ जाओगे।युवक ने कहा कि ईश्वर ने मेरी सहायता की।

अब तक मुझे एक गाय और एक भेड़ उपहार में मिल चुकी है। कुछ दिनों के बाद अब मैं कारवां वालों के साथ उनके नगर जा सकता हूं और उनके लिए काम कर सकता हूं। रात को मां और बेटे ने खाना खाया। मां थकी हुई थी अतः जल्द सो गई। युवक ने अपनी जेब से एक अनार निकाला और उसका एक टुकड़ा काटा। अनार के दाने बहुत चमक रहे थे जो जगमगाते रत्न की भांति थे। युवक को पता चला कि अनार के दाने, बहुमूल्य रत्न हैं। यह जानकर वह बहुत खुश हुआ। वह कारवां के साथ यात्रा पर नहीं गया। उसने कुछ रत्न लिए और उन्हें जाकर बाज़ार में बेच दिया। उनसे मिलने वाले पैसों से उसने एक दुकान ख़रीदी और व्यापार आरंभ किया।

जब भी लोग किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो अनुपयुक्त स्थान पर रहता हो या उसकी आय कम हो और बड़ी कठिनाइयों में जीवन व्यतीत करता हो लेकिन इन सब के बावजूद भी वह प्रसन्न हो तो लोग यह कहावत दोहराते हैं- “कुजा खुश अस्त, आन्जा के दिल ख़ुश अस्त” अर्थात् ख़ुशी वहीं पर है जहां मन प्रसन्न हो।

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