Sam Curran Biography in Hindi

सैम करन का जीवन परिचय, शिक्षा | Sam Curran Biography in Hindi)

Sam Curran Biography: सैमुअल मैथ्यू कुरेन एक इंग्लैंड के  क्रिकेटर हैं जो सभी प्रारूपों में इंग्लैंड के लिए खेलते हैं। घरेलू क्रिकेट में, वह सरे का प्रतिनिधित्व करता है, और इंडियन प्रीमियर लीग में किंग्स इलेवन पंजाब और चेन्नई सुपर किंग्स सहित कई ट्वेंटी-20 लीग में खेल चुका है। 23 दिसंबर 2022 को, ऑलराउंडर सैम ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल ) विषय में इतिहास रचा ।  वह आईपीएल लीग के अब तक के सबसे महंगे खिलाड़ी रहे. पंजाब किंग्स ने 18.50 करोड़ रुपये में खरीदकर टीम में शामिल किया. आईपीएल इतिहास में इतनी रकम अब तक किसी भी खिलाड़ी को नहीं दी गई है । वह आईपीएल लीग के ओवर ऑल सबसे महंगे खिलाड़ी हैं. खास बात ये कि पुरानी फ्रेंचाइजी पंजाब ने उन्हें फिर से अपनी टीम में चुना . इससे पहले पंजाब किेंग्स ने 2019 में सैम को 7.2 करोड़ रुपये में खरीदा था। 

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा कौन हैं सैम करण?

सैमुअल मैथ्यू कुरेन (सैम करण ) का जन्म 3 जून 1998 को नॉर्थम्प्टन, इंग्लैंड में जिम्बाब्वे के पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर केविन कुरेन पिता और माता सारा क्यूरन के घर हुआ था, जबकि उनके पिता नॉर्थम्पटनशायर के लिए काउंटी क्रिकेट खेलते थे। वह सरे और इंग्लैंड के क्रिकेटर टॉम कुरेन और नॉर्थम्पटनशायर के क्रिकेटर बेन कुरेन के भाई हैं। वह जिम्बाब्वे में पले-बढ़े और स्प्रिंगवेल हाउस, मारोंडेरा और सेंट जॉर्ज कॉलेज, हरारे में शिक्षित हुए। जिम्बाब्वे में भूमि सुधार की समय के दौरान परिवार के खेत छोड़ने से पहले उन्होंने अपने शुरुआती साल रुसापे में परिवार के खेत में बिताए। 2012 में, वह इंग्लैंड चले गए और वेलिंगटन कॉलेज, बर्कशायर में जाकर अपनी पढ़ाई की शिक्षित हुए। सैमकरण बाएं हाथ से मध्यम तेज गति के गेदबाज वह बाएं हाथ के बल्लेबाज भी है । तथा उनकी ( Tशर्ट नंबर 58) है ।

सैम करण का घरेलू और टी-20 करियर

कर्रन ने अंडर-15 , अंडर-17 और दूसरे XI स्तर पर सरे टीम की तरफ से खेले है । 2014 सीज़न के दौरान उन्होंने सरे चैम्पियनशिप प्रीमियर डिवीजन में वेयब्रिज का प्रतिनिधित्व किया। सरे टीम निदेशक एलेक स्टीवर्ट ने उन्हें “सर्वश्रेष्ठ 17 वर्षीय क्रिकेटर के रूप माना । 

सैम कुरेन ने 19 जून 2015 को द ओवल में केंट के खिलाफ नेटवेस्ट टी20 ब्लास्ट टूर्नामेंट में ट्वेंटी-20 मैच में 17 वर्ष और 16 दिन की उम्र में अपना सीनियर में डेब्यू किया था । उन्होंने 13 जुलाई 2015 को द ओवल में केंट के खिलाफ काउंटी चैंपियनशिप मैच में प्रथम श्रेणी में अपना कदम रखा । 17 वर्ष और 40 दिन की उम्र में वह टोनी लॉक के बाद इतिहास में सरे के दूसरे सबसे कम उम्र के प्रथम श्रेणी खिलाड़ी बन गये , जिन्होंने ठीक 69 वर्ष पहले 17 साल और 8 दिन की उम्र में अपना डेब्यू किया था। उन्होंने पहली पारी में 5/101 अपना प्रदर्शन किया था , और काउंटी चैंपियनशिप मैच में पांच विकेट लेने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी माने जाते हैं। उन्होंने गुरुवार 27जुलाई 2015 को द ओवल में नॉर्थम्पटनशायर के खिलाफ रॉयल लंदन वन-डे कप मैच में अपना लिस्ट ए डेब्यू किया।

दिसंबर 2018 में, उन्हें किंग्स इलेवन पंजाब (kxip) द्वारा 2019 आईपीएल के लिए खिलाड़ी नीलामी में 7.20 करोड़ रुपये में खरीदा गया था। मार्च 2019 में उन्हें आईपीएल में सलामी बल्लेबाज के रूप में 20 रन बनाए और दूसरे मैच में दिल्ली कैपिटल्स के खिलाफ उन्होंने हैट्रिक ली, जिससे पंजाब को 14 रनों से जीत मिली, जिससे उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच का पुरस्कार मिला। उन्होंने 2019 आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स के खिलाफ सिर्फ 23 गेंदों में एक तेज अर्धशतक बनाया। 2020 की IPL नीलामी से पहले पंजाब टीम के द्वारा रिलीज कर दिया । 2020 की  IPL नीलामी में उन्हें 2020 IPL से पहले चेन्नई सुपर किंग्स टीम के द्वारा खरीदा गया था।

अप्रैल 2022 में, उन्हें द हंड्रेड के 2022 के सीज़न लिए ओवल इनविजनल के द्वारा खरीदा गया था। जून 2022 में सेमं कुरेन ने ट्वेंटी-20 में अपने नाम पहले पांच विकेट लिये , 2022 टी-20 में हैम्पशायर हॉक्स के खिलाफ 5/30 लिये । बाद में उसी महीने, केंट के खिलाफ काउंटी चैम्पियनशिप मैच में, कर्रन ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 62 गेंदों में 126 रनों के साथ अपना पहला शतक बनाया।

सैम करण का अंतर्राष्ट्रीय करियर

कुरेन ने दक्षिण अफ्रीका में 2011-12 सीएसए यू 13 वीक में जिम्बाब्वे क्रिकेट यू13 एस क्रिकेट टीम में भाग लिया , जहां उन्होंने प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट का इनाम जीता। उन्होंने 2016 icc अंडर-19 विश्व कप में इंग्लैंड अंडर-19 टीम की तरफ से खेले का जहां उन्होंने सभी छह मैच खेले, 200 रन बनाए और सात विकेट भी लिये और टीम को छठा स्थान पर रही । उन्हें 2016-17 के संयुक्त अरब अमीरात के दौरे के लिए इंग्लैंड लायंस के लिए चुना गया था, और फिर 2017 के सत्र में कैंटरबरी में दक्षिण अफ्रीका ए के खिलाफ उनके मैच के लिए चुना गया था।

सैम करण कुरेन ने जनवरी 2018 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के खिलाफ 2017-18  ट्रांस-तस्मान त्रिकोणीय श्रृंखला के लिए इंग्लैंड टीम के लिए चुना लेकिन वे कोई मैच  नहीं खेले । 30 मई 2018 को उन्हें बेन स्टोक्स की जगह कवर के रूप में पाकिस्तान के खिलाफ दूसरे टेस्ट से पहले इंग्लैंड टेस्ट टीम में शामिल किया । उन्होंने 1 जून 218 को हेडिंग्ले में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया। सैम कर्रन ने इंग्लैंड की एकमात्र पारी में 20  रन बनाए, और मैच के गेदबाजी मे 2/43 पर लिये ।

24 जून 2018 को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना वन-डे मैच अंतर्राष्ट्रीय में डेब्यू किया।

सैम कुरेन ने भारत के खिलाफ टेस्ट सीरीज में इंग्लैंड टीम में अपना स्थान बरकरार रखा। एजबेस्टन में पहले टेस्ट में उन्होंने पहली पारी में 4/74 लिए, जिसमें भारत के टॉप तीन बल्लेबाजों के विकेट शामिल थे और इंग्लैंड की दूसरी पारी में 63 रन बनाए, और उनको प्लेयर ऑफ द मैच के खिताब भी दिया गया। तीसरे टेस्ट के लिए इंग्लैंड की टीम से बाहर कर दिया , फिर वह रोज़ बाउल में चोटिल क्रिस वोक्स के जगह पर लौटे, उन्होंने इंग्लैंड की पहली पारी में 78 रन बनाए। लेकिन भारत के खिलाफ इंग्लैंड का प्लेयर ऑफ द सीरीज नामित किया , 2018 सीज़न में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें क्रिकेट राइटर्स क्लब यंग क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर नामित किया था।

सेम कुरान ने नवंबर 2018 में इंग्लैंड के श्रीलंका दौरे के दौरान दो टेस्ट खेले, जिसमें 37.33 की औसत से 112 रन बनाए, लेकिन एक विकेट मिला । उन्होंने सितंबर 2019 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इंग्लैंड की घरेलू श्रृंखला के अंतिम टेस्ट में खेला, उन्हें न्यूजीलैंड के खिलाफ श्रृंखला के लिए इंग्लैंड की टेस्ट और ट्वेंटी-20 अंतरराष्ट्रीय टीम में चुना गया था। 1 नवंबर 2019 को न्यूजीलैंड के खिलाफ इंग्लैंड के लिए अपना टी20 में डेब्यू किया।

29 मई 2020 को, सैम कुरेन को खिलाड़ियों के 55-सदस्यीय में चुना गया था, जो कि कोविड -19 महामारी के बाद इंग्लैंड में शुरू होने वाले अंतर्राष्ट्रीय टीम से जुड़ने से पहले अभ्यास शुरू करने के लिए था।

1 जुलाई 2021 को, श्रीलंका के खिलाफ मैच में सैमकरण ने एकदिवसीय मैच में अपना पहला पांच विकेट लिया।

सितंबर 2021 में, सैम करण को 2020 आईसीसी मेन्स t -20 वर्ल्ड कप के लिए इंग्लैंड की टीम में चुना गया था।

टी-20 वर्ल्ड कप 2022

अफगानिस्तान के खिलाफ इंग्लैंड के शुरुआत मैच में सैम कर्रन ने पांच विकेट निकाले ।  (टी-20 में इंग्लैंड के पहले खिलाड़ी ), जिससे इंग्लैंड को मैच जीत गया में और उन्हें मैन ऑफ द मैच दिया गया । पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में 4 ओवर में 3/12 विकेट लिए और फिर से मैन ऑफ द मैच मिला । वह 11.38 की गेंदबाजी औसत से 13 विकेट लेने वाले 2022 टूर्नामेंट में दूसरे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज थे, और उन्हें प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया था।

सैम (करण ) कर्रन का ipl करियर

सैम करण 2019 में आईपीएल मे आये . वह साल पंजाब किंग्स के लिए खेले. 2019 ipl सीजन उनके लिए खराब रहा और 9 मैचों में 95 रन बनाए. 2020 में फ्रेंचाइजी ने उन्हें रिलीज किया . 2020 साल की बोली में चेन्नई सुपर किेंग्स ने 5.5 करोड़ रुपये में खरीदकर टीम में जोड़ा , ipl 2020 में (csk ) चेन्नई सुपर किंग्स के लिए 14 मैचों में 186  रन बनाए. ipl 2021 में (csk ) के लिए उन्होंने 9 मैच में कुल 56 रन बनाए। करन ने ipl  2022 से अपना नाम वापस लिया. (csk ) सीएसके ने रिलीज कर दिया. सैमकरण ने अब तक आईपीएल 32 मैचों में कुल 337 रन बनाए. आईपीएल में उनके नाम 2  अर्धशतक भी दर्ज हैं।

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Dr Bhim Rao Ambedkar biography, history and photo ambedkar jayanti in hindi

भारत रत्न से सम्मानित डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवन परिचय और जयंती | Dr Bhim Rao Ambedkar Biography, 2023 Jayanti In Hindi

Dr Bhim Rao Ambedkar biography, history and ambedkar jayanti in hindi

डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवन परिचय और जयंती | Dr Bhimrao Ambedkar History and 2023 Ambedkar Jayanti In Hindi

Dr Bhimrao Ambedkar History In Hindi– भारत की मातृभूमि पर जब- जब अधर्म ने अपनी जगह बनाई तब-तब उस अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म को कायम रखने के लिए ईश्वर के अवतार में मनुष्य जन्म लेते हैं। जब अंग्रेजों के शासनकाल था, तब उस समय भी गलत विचारधारा के लोग इस मातृभूमि को अंग्रेजो की गुलामी से आजाद करने के बजाय मानव-मानव में जाति के आधार पर भेदभाव करने से नहीं चूकते थे।

ऐसी गलत विचारधारा के लोगो का विरोध कर दलितों को सम्मान दिलाने और उनके अधिकार के लिए और भारत की आजादी को सही दिशा-निर्देश देने के लिए ईश्वर रूपी महामानव डॉ .भीमराव अम्बेडकर का जन्म हुआ जिन्हे आज ये दुनिया बाबा साहेब के नाम से भी जानती है । उन्होंने भारत की दिशा ही बदल दी और आज भी दलित लोग इन्हे भगवान की तरह पूजते है।

डॉ भीमराव अम्बेडकर भारतीय संविधान के अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, न्यायविधिक और एक महान समाज सुधारक थे जो एक प्रसिद्ध राजनेता के रूप में उभर के आये। उन्होंने कई सामाजिक बुराइयों को खत्म करने और दलित व पिछड़ी जाति के लोगो के अधिकारों की रक्षा करने के प्रयास किये उन्होंने छुआछूत जैसी कुरीतियों को और अशिक्षा और गरीबी को और कई सामाजिक समस्याओं को खत्म करने के लिए संघर्ष किये।

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भारत रत्न सम्मान से सम्मानित-

पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में डॉ भीमराव अम्बेडकर को नियुक्त किया गया था। उनकी उपलब्धियों एवं मानवता के लिए उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1990 में उन्हें मरणोपरान्त देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न‘ से सम्मानित किया किया गया था।

डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवन परिचय (Dr Bhimrao Ambedkar History In Hindi)

क्रमांकजीवन परिचय बिंदुडॉ भीमराव अम्बेडकर का जीवन परिचय
1.पूरा नाम-डॉ भीम राव अम्बेडकर
2.वास्तविक नाम –अम्बावाडेकर
3.प्रसिद्ध नाम –बाबा साहेब
4.जन्म –14 अप्रैल 1891
5.जन्म स्थान –महू, इंदौर, मध्यप्रदेश
6.पिता का नाम –रामजी मालोजी सकपाल
7.माता का नाम –भीमाबाई मुरबादकर
8.भाई का नाम –बलराम, आनंदराव
9.बहिन का नाम –मंजुला और तुलसा
10.पत्नी का नाम –रमाबाई (1906) और डॉ. शारदा कबीर
11.पुत्र का नाम –यशवंत
12.राष्ट्रीयत –भारतीय

डॉ बी आर अंबेडकर का बचपन और प्रारंभिक जीवन (Earlier Life of Dr. B R Ambedkar)-

डॉ भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को राज्य मध्य प्रदेश गाँव महू में हुआ था। उनके पिता भारतीय सेना में सूबेदार मेजर थे तथा उस समय म्हो छावनी में तैनात थे।

उनकी माता- भीमाबाई मुरबादकर और पिता- रामजी मालोजी सकपाल की 14 संतान थी, जिनमे बाबा साहेब 14 भाई बहनो में सबसे छोटे बेटे थे। पिता के रिटायरमेन्ट के बाद 1894 में उनका परिवार महाराष्ट्र के सतारा में चला गया।

भीमराव की माता की मृत्यु के बाद परवरिश किसने संभाली?

1896 में जब भीमराव की माता की मृत्यु हो गई तो उनकी परवरिश उनकी चाची ने संभाल ली परन्तु उन्हें कई आर्थिक समस्याओं से गुजरना पड़ा, कुछ समय बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली और उनका पूरा परिवार मुंबई रहने चला गया। वही अम्बेडकर जी की पढाई भी हुई और फिर जब वर्ष 1905 में वो 15 वर्ष के हुए तब उनका विवाह 9 वर्ष की रमाबाई से हो गया। 1912 में उनके पिता रामजी सकपाल जी भी गुजर गए।

उनका का परिवार हिन्दू धर्म की महार जाति से सम्बन्धित था, उस समय के कुछ लोग उन्हें अस्पृश्य समझकर उनके साथ भेदभाव एवं बुरा व्यवहार करते थे। यही कारण है कि भीमराव को भी बचपन में भेदभाव का शिकार होना पड़ा, वर्ष 1907 में जब उन्होंने अच्छे अंको के साथ मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली , तो बड़ौदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ ने प्रसन्न होकर उन्हें 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति देना प्रारम्भ किया।

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डॉ बी आर अंबेडकर की शिक्षा (Education of Dr. B R Ambedkar)-

वर्ष 1908 में उन्होंने 12 वी की परीक्षा पास की। भीमराव एक हिन्दू मेहर जाति के थे और उन्हें छुआछूत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता था ऊँची जाति के लोग उन्हें छूना भी पाप समझते थे। अम्बेडकर जी जब आर्मी स्कूल में पढ़ते थे तब वहां भी उन्हें इस भेदभाव का शिकार होना पड़ा उनके दलित वर्ग के दोस्तों को कक्षा में आने की अनुमति नहीं थी और उन्हें और उनके दोस्तों को पानी को छूने भी नहीं दिया जाता था।

डॉ भीमराव अम्बेडकर ने बी ऐ किस विषय में की थी?

स्कूल का चपरासी उन्हें दूर से पानी डालकर देता था और जिस दिन कभी चपरासी नहीं आता था उस दिन उनको पानी तक नहीं मिलता था। भेदभाव का ऐसा व्यव्हार देखकर अम्बेडकर जी ने निर्णय लिया की वे दलित लोगो के अधिकार और सम्मान के लिए संघर्ष करेंगे। उसके बाद वर्ष 1912 में राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में बी ए करने के बाद बड़ौदा महाराज ने उन्हें अपनी फौज में उच्च पद पर नियुक्त कर दिया।

डॉ भीमराव अम्बेडकर ने नौकरी से त्यागपत्र कब दिया?

अपने पिता की मृत्यु के बाद वर्ष 1913 में उन्होंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और उच्च शिक्षा हेतु बाहर विदेश पढ़ने के लिए चले गए। बड़ौदा के महाराज सयाजी राव गायकवाड़ ने उनके इस फैसले से प्रसन्न हुए और उनके त्यागपत्र को स्वीकार कर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए उन्हें 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति भी देना प्रारम्भ किया। इसके बाद वर्ष 1915 में भीमराव अमेरिका चले गए, जहाँ न्यूयॉर्क के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से उन्होंने एम ए तथा वर्ष 1916 में उन्होंने पी एच डी की उपाधि प्राप्त की।

अम्बेडकर का दलितो को उनका अधिकार दिलाना-

वर्ष 1917 में वे कोल्हापुर के शासक शाहजी महाराज से मिले और उनकी आर्थिक सहायता से मूक नायक नामक पाक्षिक पत्र निकालना शुरू किया, जिसका उद्देश्य था दलितो को उनका अधिकार दिलाना।

पी एच डी की डिग्री प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वर्ष 1923 में वे इंग्लैण्ड चले गए और वहाँ लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उन्होंने डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की। क़ानूनी व्यवसाय में उन्होंने बार एट लॉ की डिग्री भी प्राप्त की। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1923 में अम्बेडकर अपने देश लोट गए और मुंबई उच्च न्यायालय में वकालत करना शुरू किया।

वकालत करते समय भी उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनके साथ भेदभाव किया जाता था। कोई वकील उन्हें छूना तो दूर उनके पास भी नहीं जाता था उन्हें कोर्ट में बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं देते थे। जब उन्हें एक हत्या का मुकदमा मिला ,तो सभी बैरिस्टर ने उस केस को करने से मना कर दिया परन्तु अम्बेडकर ने इस केस की अच्छे से पैरवी की और जज ने उनके पक्ष में निर्णय दिया। इस मामले के बाद सभी लोग अम्बेडकर जी का सम्मान करने लगे।

डॉ भीमराव अम्बेडकर राजनैतिक सफ़र (Dr. B R Ambedkar Political Life)-

बचपन से ही अम्बेडकर जी के साथ अपनी जाति के प्रति भेदभाव हो रहा था इससे उनको बहुत अपमान सहना पड़ता था इसी कारण उन्होंने इसका विरोध करने का निर्णय लिया और संघर्ष करने के लिए वर्ष 1927 में उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ नामक एक मराठी पाक्षिक समाचार – पत्र निकालना शुरू किया, जिसका उद्देश्य दलित लोगो के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें सम्मान दिलाना और शोषण से बचाना था।

कांग्रेस के बड़े नेताओं को अपनी ओर आकर्षित करना-

इस पत्र के निकलने के बाद बम्बई के गवर्नर अम्बेडकर जी के विचारो से प्रभावित हुए और उन्हें विधानपरिषद् के लिए चुना गया और वर्ष 1937 तक वे बम्बई विधानसभा के सदस्य बने रहे थे ।

भीमराव अम्बेडकर ने दलितों के साथ हो रहे शोषण का कठिन संघर्ष किया। उस समय उच्च वर्ग के लोग दलितों को अछूत मानकर मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने देते थे। इसीलिए अम्बेडकर जी ने दलितों को भी मन्दिरों में प्रवेश दिलाने के लिए सत्याग्रह किया। वर्ष 1980 में उन्होंने नासिक के कालाराम मन्दिर में प्रवेश दिलाने के लिए 30 हजार दलितों के साथ सत्याग्रह किया। इस सत्याग्रह में उच्च वर्ग के लोगो ने लाठिया चला दी जिससे कई लोग घायल हो गए परन्तु फिर भी किसी ने हार नहीं मानी और आखरी दम तक अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे और अंत में अम्बेडकर जी ने सभी को मंदिर में जाने की अनुमति दिला दी और इस घटना के बाद सभी लोग ‘ उन्हें बाबा साहब ‘ कहने  लगे।

इण्डिपेण्डेण्ट लेबर पार्टी की स्थापना कब की गयी?

अम्बेडकर जी ने कट्टरपन्थियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए दलित एवं अछूत समझे जाने वाले लोगों की भलाई के लिए वर्ष 1935 में  ‘इण्डिपेण्डेण्ट लेबर पार्टी’ की स्थापना की। जिससे उन्हें गवर्नमेण्ट लॉ कॉलेज के प्रधानाचार्य का पद हासिल हुआ। जब वर्ष 1937 में बम्बई में चुनाव की प्रक्रिया हुई तो अम्बेडकर जी की पार्टी को पन्द्रह में से तेरह स्थानों पर सफलता मिली और कांग्रेस पार्टी के जवाहरलाल नेहरू एवं सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे बड़े नेता भी अम्बेडकर की विचारधारा से प्रभावित हुए।

वायसराय की रक्षा परामर्श समिति की सदस्यता के लिए वर्ष 1941 में अम्बेडकर को इस समिति का सदस्य बनाया गया। कुछ समय बाद वर्ष 1944 में वापस वायसराय ने एक्जीक्यूटिव काउंसिल बनाई और श्रम सदस्य के रूप में डॉ. अम्बेडकर नाम चुनकर उन्हें सम्मानित किया गया।

15 अगस्त, 1947 को जब भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई हुआ, तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार बनी और उसमे स्वतन्त्र भारत का पहला कानून मन्त्री डॉ भीमराव अम्बेडकर को बनाया गया। फिर उन्हें भारत की संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया।

डॉ भीमराव अम्बेडकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान कब घोसित गया ?

भारत के संविधान को बनाने में अम्बेडकर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है इसी कारण उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता भी कहा जाता है । उनकी मृत्यु के बाद वर्ष 1990 में डॉ भीमराव अम्बेडकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।

डॉ भीमराव अंबेडकर का बौद्ध धर्म स्वीकार करना (Dr. B R Ambedkar & Buddhism)-

डॉ भीमराव अम्बेडकर सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते थे। वे हिन्दू धर्म के विरुद्ध नहीं थे बल्कि वे सभी लोगो को समान अधिकार दिलाना चाहते थे और भेदभाव जैसी बुराइयों को दूर करना चाहते थे जब उन्हें ये समझ आ गया की उच्च वर्ग के लोगो के रहते हुए पिछड़े एवं दलितों को उनका अधिकार नहीं मिल सकता है तो उन्होंने धर्मपरिवर्तन करने का निर्णय ले लिया और उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को दशहरे के दिन करीब दो लाख लोगों के साथ नागपुर में एक विशाल समारोह में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।

डॉ भीमराव अम्बेडकर की म्रत्यु कब हुई? (Dr. B R Ambedkar Death)-

बाबा साहेब के नाम से प्रसिद्ध डॉ. भीमराव आम्बेडकर एक महान्, समाज सुधारक, शिक्षाविद् क्रांतिकारी, योद्धा एवं दलित राजनेता थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन दलितों के साथहो रहे अन्याय,छुआछूत, शोषण,ऊँच-नीच तथा असमानता का विरोध करने में लगा दिया।

6 दिसम्बर 1956 को भारत के इस महान् सपूत एवं दलितों के मसीहा का निधन हो गया। अम्बेडकर ने बहुत हद तक दलितोको उनका अधिकार दिलाकर उन्हें सम्मान से जीवन जीना सिखाया। आज समाज में जो छुआछूत की बुराई कम हुई है तो इसका सबसे ज्यादा योगदान अम्बेडकर को ही जाता है। अम्बेडकर के इस योगदान का पूरी मानव जाती सम्मान करती है।अम्बेडकर जी आज दुनियाभर के लिए दलितों के मसीहा और समाज के महामानव है।

डॉक्टर अम्बेडकर द्वारा लिखी गयी कुछ किताबे (Dr Bhimrao Ambedkar Some Books)

अपने जीवनकाल में अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उन्होंने कई पुस्तके लिखी है, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय पुस्तकें हैं –

Ambedkar some boks, डॉक्टर अम्बेडकर द्वारा लिखी गयी कुछ किताबे, भारत का राष्ट्रीय अंश, शूद्र कौन और कैसे

अम्बेडकर जयंती 2021, 2022, 2023, 2024 व 2025 में कब है? (Dr. B R Ambedkar jayanti 2023 date)-

वर्षदिनांकवारजयंती का नाम
202114 अप्रैलबुधवारडॉ अम्बेडकर जयंती
202214 अप्रैलगुरुवारडॉ अम्बेडकर जयंती
202314 अप्रैलशुक्रवारडॉ अम्बेडकर जयंती
202414 अप्रैलरविवारडॉ अम्बेडकर जयंती
202514 अप्रैलसोमवारडॉ अम्बेडकर जयंती

आखरी शब्द-

डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवन परिचय हिंदी में (Dr Bhimrao Ambedkar History In Hindi) पढ़ कर केसा लगा हमें आशा हे की आप को इस से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा अगर आप का कोई सुझाव है तो हमें नीचे कमेंट में अपना सुझाव जरूर बताये और “Bhimrao Ambedkar History In Hindi” इसे ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ शेयर भी करे ताकि उन्हें भी ऐसी जानकारी मिल सकते।

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Guru Ravidas Ji, गुरु रविदासजी

गुरु रविदास जी के जीवन परिचय पर निबंध और जयंती | Guru Ravidas Ji Biography, Essay on History, 2023 Jayanti In Hindi

गुरु रविदास जी के जीवन परिचय पर निबंध और 2023 में उनकी जयंती { Guru Ravidas Ji Biography, History On Essay, 2023 Jayanti In Hindi }

इतिहास के 15 वी शताब्दी के महान समाज सुधारक संत गुरु रविदास जी (रैदास) का जन्म एक दलित परिवार में 1376 ईस्वी से 1399 ईस्वी के बीच हुआ था। वह उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में रहते थे। इनके पिता संतो़ख दास जी जिन्हे कई लोग रग्घु जी के नाम से भी पुकारते थे। वह राजा नगर राज्य में सरपंच हुआ करते थे इनका जूते बनाने और सुधारने का काम हुआ करता था वो मरे हुए जानवरों की खाल निकालकर उससे चमड़ा बनाकर उसकी चप्पल बनाते थे।

रविदास जी अधिकतर भक्ति की भावना में ही लीन रहते थे उन्हें बचपन से ही साधू संतो के साथ रहना बहुत अच्छा लगता था, लेकिन रविदास जी भक्ति के साथ अपने काम पर विश्वास करते थे वो अपने पिता के साथ जूते बनाने का काम सीखते और पूरी मेहनत के साथ काम करते थे। रविदास जी अपनी मेहनत से लोगो की मदद करते थे।

गुरु रविदास जी का जीवन परिचय (Guru Ravidas Biography and history)

क्रमांकजीवन परिचय बिंदु गुरु रविदास जी का जीवन परिचय
1.नामसंत गुरु रविदास जी
2.प्रचलित नामरोहिदस, रैदास
3.जन्म तिथि376-77 इसवी से 1399 के बीच माना जाता है।
4.जन्मस्थानगोवर्धनपुर गांव, वाराणसी, उत्तरप्रदेश
5.मृत्यु1540 इसवी (वाराणसी)
6.पिता का नामश्री संतो़ख दास जी (रग्घु जी)
7.माता का नामश्रीमती कलसा देवी जी
8.पत्नी का नामश्रीमती लोना जी
9.बेटा का नामविजय दास जी
10.दादा का नाम श्री कालू राम जी
11.दादी का नामश्रीमती लखपति जी
12.रविदास जी की जयंतीमाघ महीने के पूर्णिमा के दिन
13.स्वभावकल्याणवादी ,समाज सुधारक,निर्गुणसंत
14.प्रचलित भजनकह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
15.प्रचलित दोहेमन चंगा तो कठौती में गंगा
16.रविदास स्मारक रविदास पार्क, रविदास घाट, रविदास नगर, रविदास मेमोरियल गेट आदि।
Guru Ravidas History and Jayanti

संत रविदास जी के अनेक नाम-

संत रविदास जी को राजस्थान के लोग ‘रैदास’ के नाम से जानते थे और पंजाब के लोग ‘रविदास’ कहते थे। बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ के नाम से पहचानते थे तो गुजरात के लोग ‘रोहिदास’ के नाम से जानते थे। कुछ लोगो की मान्यता है कि माघ मास की पूर्णिमा को रविवार के दिन रविदास जी ने जन्म लिया तो उनका नाम रविदास रख दिया गया। इस तरह अलग अलग जगह पर उन्हें अलग अलग नाम से लोग जानते थे।

रविदास दास जी का स्वभाव-

रविदास जी का स्वभाव और उनके गुणों का पता उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से चलता है। एक बार की बात है त्यौहार पर आस-पड़ोस के लोग गंगा में स्नान के लिए जा रहे थे तो उनके शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने को खा तो वह बोले में गंगा-स्नान के लिए जरूर जाता परन्तु वह जाने से क्या पुण्य मिलेगा जब मेरा मन यहाँ लगा रहेगा जिस काम को करने के लिए हमारी आत्मा और मन तैयार ही ना हो वह काम करना उचित नहीं यदि मन लगे तब ही कठौते के जल में गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है।

इससे पता चलता है की उनके विचारों का अर्थ यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। ईश्वर का सच्चा भक्त वही हो सकता है जो अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करे।

बचपन से ही रविदास जी बहुत बहादुर और भगवान् को बहुत मानने वाले थे। वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।

रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। उनके गाओं में जब भी किसी को मदद की जरूरत होती तो वे निस्वार्थ होकर लोगो की मदद करते कभी कभी वो बिना पैसा लिए लोगों को जूते भी दान में दे दिया करते थे। उन्हें लोगो की सहायता करना बहुत अच्छा लगता था। यदि रास्ते में उन्हें कोई साधु-संत मिल जाएं तो वे उनकी सेवा करने लग जाते थे। उनका स्वाभाव बहुत ही विनम्र और दयालु था। इसी कारण लोग उनके अनुयायी बनने लग गए।

गुरु रविदासजी का वैवाहिक जीवन-

Guru Ravidas Ji का भगवान् के प्रति इतना घनिष्ट प्रेम और सच्ची भक्ति के कारण वो अपने परिवार, व्यापार और माता-पिता से दूर होते जा रहे थे। यह देख कर उनके माता-पिता ने उनका विवाह श्रीमती लोना देवी से करवा दिया और उनसे उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम विजय दास रखा।

विवाह के बाद भी वह अपने परिवार के व्यापार में सही तरीके से ध्यान नहीं दे पा रहे थे। यह देख कर उनके पिता ने उन्हें घर से निकल दिया ताकि वह अपने सामाजिक कार्य बिना किसी की मदद लिए कर सके। इसके बाद वह अपने घर के पीछे रहने लगे और अपने सामजिक कार्यों को करने लगे।

रैदास की वाणी भक्ति की से श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी की उन्हें अपनी समस्याओ का समाधान मिल जाता था और लोग उनके अनुयायी बन जाते थे।

गुरु रविदासजी की शिक्षा | Education of Guru Ravidas Ji

रविदास जी जब बचपन मे अपने गुरु, पंडित शारदा नन्द की पाठशाला में जाया करते थे तो उनके गांव के कुछ उच्च जाति के लोगों ने उन्हें वहा पढ़ने से मना कर दिया परन्तु उनके विचारों प्रतिभा को देखकर पंडित शारदा नन्द को यह यकीन हो गया था कि रविदासजी बहुत ही प्रतिभाशाली हैं और वो आगे जाकर एक अच्छे आध्यात्मिक गुरु और महान समाज सुधारक बनेगे। रविदास जी बहुत ही बुद्धिमान बच्चे थे और पंडित शारदा नन्द से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह बहुत महान समाज सुधारक बने गए। रविदास जी के साथ पाठशाला में पंडित शारदा नन्द जी का बेटा भी पढ़ता था, वे दोनों अच्छे मित्र थे एक बार वे दोनों छुपन छुपाई का खेल रहे थे।

एक दो बार खेलने के बाद रात हो गई, जिससे उन लोगों ने अगले दिन खेलने की बात कही जब दुसरे दिन सुबह रविदास जी खेलने आये तो उनका मित्र उन्हें वहाँ दिखाई नहीं देता तब वो उसके घर चले गए वहां जाकर उन्हें पता चला कि रात को उसके मित्र की मृत्यु हो गई और ये सुन रविदास जी सुन्न पड़ जाते है।

रविदास जी को बचपन से ही अलौकिक शक्तियां मिली हुई जब उनके गुरु शारदा नन्द जी उन्हें मृत मित्र के पास ले जाते है तो वे अपने मित्र से कहते है कि ये सोने का समय नहीं है, उठो और मेरे साथ खेलो तो ये यह शब्द सुनते ही उनका मृत दोस्त जीवित हो गया। ये देख वहां मौजूद हर कोई अचंभित हो जाता है और इस तरह कई लोग उनके ऐसे चमत्कार देख कर उनके अनुयायी बन गए और उन्हें पूजने लगे।

रविदास जी की मृत्यु ( Sant Ravidas Death )

गुरु रविदास जी की सच्चाई, मानवता, भगवान् के प्रति प्रेम, सद्भावना देख, दिन पे दिन उनके अनुयाई बढ़ते जा रहे थे। दूसरी तरफ कुछ ब्राह्मण उनको मारने की योजना बना रहे थे। रविदास जी के कुछ विरोधियों ने एक सभा का आयोजन किया, उन्होंने गाँव से दूर सभा आयोजित की और उसमें गुरु जी को आमंत्रित किय।

गुरु जी उन लोगों की उस चाल को पहले ही समझ जाते है जब गुरु जी वहाँ जाकर सभा का शुभारंभ करते है तो गलती से गुरु जी की जगह उन लोगों का साथी भल्ला नाथ बैठ जाता और वो मारा जाता जब गुरु जी थोड़ी देर बाद अपने कक्ष में शंख बजाते है, तो सब अचंभित हो गए। अपने साथी को मरा देख रविदास जी बहुत दुखी हो गए और दुखी मन से गुरु जी के पास चले गए।

रविदास जी के अनुयाईयों का मानना है कि रविदास जी 120 या 126 वर्ष बाद अपने आप शरीर को त्याग देते है। माना जाता है की उन्होंने वाराणसी में 1540 ईस्वी में अपना शरीर स्वय ही समर्पण कर दिया। कुछ लोगो मानना है की वे चित्तौड़गढ़ से स्वर्गारोहण कर गए थे और चित्तौड़ में ही संत रविदास की छतरी बनी हुई है।

रविदास जी के दोहे, कोट्स ( Guru Ravidas Ji Dohe, Quotes )

Guru Ravidas Ji Dohe Quotes

“मन चंगा तो कठौती में गंगा”

Guru Ravidas Ji Dohe and Quotes in hindi

“रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात”

Guru Ravidas Ji Dohe, Quotes Hindi

“मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊँ सहज सरूप”

Guru Ravidas Ji Dohe

“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात”

गुरु रविदासजी और बेगमपुर शहर Guru Ravidas Ji and Begumpura City-

बेगमपुरा शहर से रविदास जी का गहरा संबंध था क्योंकि यह शहर बहुत शांति और मानवता से जुड़ा शहर था। बेगमपुरा शहर को उनकी कविता लिखते समय उनके द्वारा आदर्श रूप दिया गया था जहाँ उन्होंने वर्णन किया था कि बिना किसी कष्ट, पीड़ा, या भय और एक भूमि के साथ एक शहर जहाँ सभी लोग बिना किसी भेदभाव, गरीबी और जाति अपमान के समान हैं। एक ऐसी जगह, जहाँ सब लोग मिलकर रहते है , कोई चिंता नहीं है ,किसी को , कोई आतंक नहीं है,कोई भी किसी को कर नहीं देता है।

गुरु रविदास जी का मीरा बाई से संबंध-

मीरा बाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तोड़ की रानी थी। बचपन में मीरा बाई की माता के देहांत के बाद इनके दादा ने ही उनकी परवरिश की। दादाजी को दुदा जी भी कहते थे जो रविदास जी के अनुयायी थे। मीरा बाई अपने माँ बाप की एकलौती संतान थी। मीरा बाई अपने दादा जी के साथ हमेशा रविदास जी से मिलती रहती थी। जहाँ वे उनकी शिक्षा से बहुत प्रभावित हुई। शादी के बाद मीरा बाई ने अपनी परिवार की आज्ञा से रविदास जी को अपना गुरु बना लिया। उनकी शिक्षा से प्रभावित हो कर वो उनकी अनुयायी बन गई थी। कई लोगो का मानना हे की रविदास जी ने कई बार मीराबाई को मृत्यु से बचाया था।

रविदास जी के लिए मीराबाई ने लिखा हे वह यह है-

“गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी”
“मीरा सत गुरु देव की करै वंदा आस”
“जिन चेतन आतम कहया धन भगवन रैदास”

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संत रविदास का मंदिर और लोगो की आस्था

वाराणसी में संत रविदास का मंदिर और मठ बना है। लोग उन्हें बहुत भक्ति के साथ पूजते है और उनकी पूजा करते है। बहुत दूर दूर से लोग मंदिर के दर्शन करने के लिए आते है और वह रविदास जी की भक्ति में लीन हो जाते है।

इसके अतिरिक्त श्री गुरु रविदास जी के नाम पर पार्क भी बना है जो उनकी यादगार के लिए बनाया गया है। कई जगह उनके स्मारक बने हुए है जो उनकी भक्ति के प्रतिक है।

संत गुरु रविदास जी के 41 पवित्र लेख जो गुरु ग्रन्थ साहिब में उल्लेख किये गए है

सीरी –1गौरी –5असा –6
गुजारी –1सोरथ –7धनासरी –3
जैतसरी –1सूही –3बिलावल –2
गौंड –2रामकली –1मरू –2
केदार –1भैरू –1बसंत –1
मल्हार –3

गुरु रविदास जी की जयंती और अवकाश 2021, 2022, 2023, 2024 व 2025

रविदास जयंती माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस साल रविदास जी की जयंती 29 फरवरी 2023, में मनाई जाएगी, जो उनका 644 वा जन्म दिवस होगा । वाराणसी में इनके जन्म स्थान पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। जहाँ लाखों की संख्या में उनके भक्त वहां पहुँचते है। कई अनुयाई इस दिन पवित्र नदी में स्नान करते है, और फिर रविदास की प्रतिमा की पूजा करते है। रविदास जयंती मनाने का उद्देश्य यही है, कि गुरु रविदास जी की शिक्षा को याद किया जा सके,उन्होंने जो लोगो को भाईचार और शांति की सीख दी हे उसे लोग अपने जीवन में उतार सके।

Guru Ravidas Ji Jayanti and Holiday In India:-

जन्म दिवसदिनांकवारवर्षअवकाशराज्य
64427-फरवरीशनिवार2021गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब
64516-फरवरीबुधवार2022गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब
6465-फरवरीरविवार2023गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब
64724-फरवरीशनिवार2024गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब
64812-फरवरीबुधवार2025गुरु रविदास जयंतीहिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब

संत रविदास जयंती का महत्व-

संत रविदास जयंती के लिए हम सब मिलकर इस जयंती को मनाने के लिए एक जुट हो जाते है और सब साथ मिलकर उनकी पूजा अर्चना करते है उनके भजन गाते है और उनके दोहे पढ़ते है सड़को पर रैली निकलते है। उन्हें याद करके हमे इस बात का बोध होता है की समाज में जाती के नाम पर ऊंच -नीच का भेदभाव नहीं करना चाहिए और सबको मिलजुलकर रहना चाहिए। संत रविदास जयंती हमे उनके सिखाये हुए मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है।

गुरु रविदास जी और ब्रहामणों की कहानी –

एक समय की बात है जब गुरु रविदासजी को नरेश के दरबार में बुलाया और उन पर ये आरोप लगाया की वो कोई संत नहीं है बल्कि ढोंग कर रहे है और उन्हें भगवान की मूर्ति छूना तो दूर भगवान् की पूजा भी नहीं करनी चाहिए। राजा ने दोनों को मूर्ति लेकर गंगा नदी के तट पर बुलाया जब वो दोनों मूर्ति लेकर गंगा नदी के तट पर आये तो राजा ने कहा- जिसके हाथ से भगवान की मूर्ति पानी में डूबने के बजाय तैरेगी वही भगवान का सच्चा भक्त है। सबसे पहले ब्रहामणों ने अपना मूर्ति पानी में डाला तो मूर्ति झट से पानी में डूब गयी ।

उसके बाद गुरु रविदासजी ने ठाकुर जी के मूर्ति को धीरे से पानी में छोड़ा और वो तैरने लगी ।यह चमत्कार देख कर गुरु रविदास जी के भक्त बन गए और उनके पैर छूने लगे और उस दिन के बाद लोग उन्हें मानने लग गए और उनका सम्मान करने लग गए।

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संत गुरु रविदास जी के सामाजिक कार्य-

संत रविदास ने समाज में जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए अपने भजन, दोहों के माध्यम से सामाजिक एकता पर बल दिया और उन्होंने मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। संत गुरु रविदास जी ऐसे समाज की कल्पना करते है जहां किसी भी प्रकार का ऊंच-नीच, जात-पात, दुःख-सुख, लोभ-लालच का भेदभाव नहीं किया जाता है। रविदासजी जी लिखते है कि-

‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच,
नर कूं नीच कर डारि है,
ओछे करम की नीच’

यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने जन्म से नीच नहीं होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति कर्म के हिसाब से नीच होता है।

गुरु रविदास जी का सिद्धांत | Principle of Guru Ravidas Ji

  • भगवान एक है और अत्यंत शक्तिशाली है।
  • ईश्वर का एक कण मनुष्य की आत्मा है।
  • भगवान निचली जाति के लोगों को नहीं मिल सकते है ऐसी धारणा पर विश्वास नहीं करना।
  • ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करना।
  • मनुष्य की मृत्यु निश्चित है।

संत रविदास की रचनाएं –

Compositions of saint ravidas-संत रविदास की रचनाएं

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा।

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी।

Compositions of saint ravidas-संत रविदास की रचनाएं

प्रभु जी, तुम मोती हम धागा,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भक्ति करै रैदासा।

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती।

गुरु रविदास जीवनी का निष्कर्ष-Conclusion

गुरु रविदास (Sant Guru Ravidas Ji) एक महान संत थे। रविदास जी ने ऊंच-नीच, जात-पात का भेदभाव मिटाने के अत्यंत प्रयास किये और वो प्रयास सफल भी हुए। वे दलित वर्ग के लोगों को समाज में सम्मान दिलाने और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। जिसके कारण उनका सम्मान किया जाने लगा। ईश्वर से मिली अद्भुत शक्तियां उन्होंने समाज के कल्याण में लगा दी। अतः हम भी उनके सिखाये हुए मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बना सकते है।

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